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Friday, July 20, 2018

हड़प्पा संस्कृति- Part 2


हड़प्पा संस्कृति => कांस्य युग सभ्यता

ताम्र पाषाणीक संस्कृतियों से पुरानी पर इनसे कहीं अधिक विकसित हैं


हालांकि यह सभ्यता नगरीकृत और कांस्य युगीन थी , पर यहाँ गावों की संख्या सर्वाधिक थी 



सिंधु के कई प्राक हड़प्पीय स्थल परिपक्व होकर सिंधु व पंजाब में शहरी सभ्यता के रूप में परिणित हुई

इसका उदय भारतीय उपमहादेश के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ



हड़प्पा संस्कृति नाम पड़ा

    • क्योंकि इसका पता सबसे पहले 1921 में पाकिस्तान के प्रांत में हड़प्पा नामक आधुनिक स्थल से चला
    • बाद में जॉन मार्शल ने इसे सिंधु सभ्यता नाम दिया 
    • 1853 में अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने हड़प्पा संस्कृति की मुहर देखी पर वे इसका महत्व नहीं समझ सके 
    • 1921 में दयाराम साहनी के नेत्रत्व में हड़प्पा की खुदाई हुई

केंद्र स्थल पंजाब व सिंधु में मुख्यत: सिंधु घाटी में पड़ता हैं

पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमांत भाग

यहीं से इसका विस्तार दक्षिण व पूर्व की ओर हुआ

इस सभ्यता का विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू कश्मीर, चिनाब नदी), दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट, प्रवरा नदी), पूरब में आलमगीर (मेरठ , हिण्डन नदी) तथा पश्चिम में सुत्कांगेडोर (बलूचिस्तान , दाश्क नदी) तक था  






क्षेत्रफल = 1,299,600 km

यह क्षेत्र पाकिस्तान से बड़ा हैं जो प्राचीन मिश्र व मेसोपोटामिया से भी बड़ा था।  ईसा पू 3-2 सहस्त्राब्दी में इससे बड़ी कोई संस्कृति नहीं थी

हड़प्पा के 1500 स्थलों का पता चल चुका हैं

1.   कुछ हड़प्पा के आरंभिक अवस्था के

2.   कुछ परिपक्व अवस्था के 

=> केवल 7 ही नगर जैसे हैं
-    हड़प्पा => पंजाब में

-    मोहेनजोदोड़ों => सिंध (अर्थात प्रेतों का टीला)

-    चंदुहड़ों


-    लोथल => गुजरात में खंभात की खाड़ी के ऊपर


-    कालीबंगा => अर्थात काली रंग की चूड़ियाँ => राजस्थान में

-    बनावली => हरियाणा के हिसार जिले में

- सुतकागेंडोर और सुरकोटदा के समुद्रीय नगर => दोनों में एक एक नगर दुर्ग हैं (गुजरात के धौलावीरा में भी किला हैं

     - कलिबंगा व बनावली

=> दोनों में हड़पा पूर्व व हड़प्पा कालीन सांस्कृतिक अवस्थाएँ

=> कच्ची ईंटों के चबूतरों, सड़कों, मोरियों के अवशेष हड़प्पा कालीन हैं 




 

           
3. कुछ उत्तर अवस्था के 
  • हरियाणा में घग्गर नदी के किनारे राखीगढ़ी में तीनों अवस्थाएँ
  • हड़प्पा व मोहेनजोदोड़ों में अपने अपने दुर्ग थे
·         हड़प्पा में शासक वर्ग  के लोग रहते थे
·         दुर्ग के बाहर निम्न स्तर का शहर होता था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे
  • नगर के भवन ग्रिड की तरह व्यवस्थित थे
  • सड़कें समकोण पर काटती थी
  • नगर अनेक खंडो  में विभक्त थे
  • हड़प्पा व मोहेनजोदोड़ों में बड़े बड़े भवन थे

·         भवन/स्मारक बताते हैं कि वहाँ के शासक मजदूर जुटाने और कर संग्रह में परम कुशल थे
·         शासक प्रणाली व प्रतिष्ठावान थे
  •       कांस्य युग की किसी और सभ्यता ने स्वास्थ्य और सफाई को इतना महत्व नहीं दिया जितना हड़प्पा संस्कृति ने लोगों ने दिया

मोहेनजोदड़ों
  •       सबसे महत्वपूर्ण

·         विशाल स्नानागार
-    दुर्ग के टीले में हैं धार्मिक अनुष्ठान के लिए किया जाता था
-    11.88 * 7.01 * 2.43 मीटर
-    दोनों सिरों पर ताल तक सीढ़ियाँ बनी हुई थी
-    फर्श पकी ईंटों का बना हैं
-    पास के कमरे में बड़ा सा कुआं हैं
-    इससे पानी निकालकर हौज में डाला जाता था
-    हौज के कोने पर निर्गम मुख हैं जिससे पानी नाहकर नाले में जाता था
·         अनाज रखने का कोठार
-    सबसे बड़ी इमारत
-    45.77*15.23 मीटर
  •       जल निकास प्रणाली अदभुत  थी
     -    हर घर में प्रांगण व स्नानागार होते थे
     -    घरों का पानी बहकर सड़कों तक जाता था जहां नीचे मोरियाँ बनी होती थी
     -    मोरियाँ ईंटों और पत्थर कि सिल्लियों से ढकी रहती थी
-    मोरियों में मेनहोल भी थे
हड़प्पा
  •      कोठार मिले हैं
·         6 -6 कोठार दो पंक्तियों में हैं
·         प्रत्येक 15.23*6.09 मीटर
·         कुल 12 कोठार => इनका कुल क्षेत्रफल = 836.1025 मीटर2
-    मोहेंजोदड़ों के कोठार के बराबर
·         ईंटों के चबूतरे पर बने हैं
·         नदी के किनारे के पास हैं
  •      कोठार के दक्षिण में खुला फर्श हैं

·         इस पर दो कतारों में वृत्ताकार चबूतरे
-    इसका उपयोग फसल दावने के लिए होता था => फर्श की दरारों में गेंहू व जौ के दाने मिले हैं
  •      दो कमरों वाला बैरक मिला हैं जो मजदूरों के रहने के लिए था
  •       निकास प्रणाली भी विलक्षण हैं
कालीबंगा
  •      नगर के दक्षिण में ईंटों के चबूतरे मिले हैं जो कोठारों के लिए हैं
  •      अनेक घरों में अपने अपने कुएं थे
बनावली
  •           नालियों व मोरियों के अवशेष मिले हैं
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