ताम्र पाषाणीक संस्कृतियों से पुरानी पर
इनसे कहीं अधिक विकसित हैं
हालांकि यह सभ्यता नगरीकृत और कांस्य युगीन थी , पर यहाँ गावों की संख्या सर्वाधिक थी
सिंधु के कई प्राक हड़प्पीय स्थल परिपक्व होकर सिंधु व पंजाब में शहरी सभ्यता के रूप में परिणित हुई
इसका उदय भारतीय उपमहादेश के पश्चिमोत्तर
भाग में हुआ
हड़प्पा संस्कृति नाम पड़ा
- क्योंकि इसका पता सबसे पहले 1921 में पाकिस्तान के प्रांत में हड़प्पा नामक आधुनिक स्थल से चला
- बाद में जॉन मार्शल ने इसे सिंधु सभ्यता नाम दिया
- 1853 में अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने हड़प्पा संस्कृति की मुहर देखी पर वे इसका महत्व नहीं समझ सके
- 1921 में दयाराम साहनी के नेत्रत्व में हड़प्पा की खुदाई हुई
केंद्र स्थल
पंजाब व सिंधु में मुख्यत: सिंधु घाटी में पड़ता हैं
पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमांत भाग
यहीं से इसका विस्तार
दक्षिण व पूर्व की ओर हुआ
इस सभ्यता का विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू कश्मीर, चिनाब नदी), दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट, प्रवरा नदी), पूरब में आलमगीर (मेरठ , हिण्डन नदी) तथा पश्चिम में सुत्कांगेडोर (बलूचिस्तान , दाश्क नदी) तक था
यह क्षेत्र पाकिस्तान से बड़ा हैं जो प्राचीन मिश्र व मेसोपोटामिया से भी बड़ा था। ईसा पू 3-2 सहस्त्राब्दी में इससे बड़ी कोई संस्कृति नहीं थी
हड़प्पा के 1500
स्थलों का पता चल चुका हैं
1.
कुछ हड़प्पा के आरंभिक अवस्था के
2.
कुछ परिपक्व अवस्था के
=> केवल 7 ही नगर जैसे हैं
-
हड़प्पा => पंजाब में
-
मोहेनजोदोड़ों => सिंध (अर्थात प्रेतों का टीला)
-
चंदुहड़ों
-
कालीबंगा => अर्थात काली रंग की चूड़ियाँ => राजस्थान में
-
बनावली => हरियाणा के हिसार जिले में
- सुतकागेंडोर और सुरकोटदा के समुद्रीय नगर =>
दोनों में एक एक नगर दुर्ग हैं (गुजरात के धौलावीरा में भी
किला हैं
- कलिबंगा व बनावली
=> दोनों में हड़पा पूर्व व हड़प्पा कालीन
सांस्कृतिक अवस्थाएँ
=> कच्ची
ईंटों के चबूतरों, सड़कों, मोरियों के
अवशेष हड़प्पा कालीन हैं
3. कुछ उत्तर अवस्था के
- हरियाणा में घग्गर नदी के किनारे राखीगढ़ी में तीनों अवस्थाएँ
- हड़प्पा व मोहेनजोदोड़ों में अपने अपने दुर्ग थे
·
हड़प्पा में शासक वर्ग के लोग रहते थे
·
दुर्ग के बाहर निम्न स्तर का शहर होता था जहां ईंटों के
मकानों में सामान्य लोग रहते थे
- नगर के भवन ग्रिड की तरह व्यवस्थित थे
- सड़कें समकोण पर काटती थी
- नगर अनेक खंडो में विभक्त थे
- हड़प्पा व मोहेनजोदोड़ों में बड़े बड़े भवन थे
·
भवन/स्मारक बताते हैं कि वहाँ के शासक मजदूर जुटाने और कर
संग्रह में परम कुशल थे
·
शासक प्रणाली व प्रतिष्ठावान थे
- कांस्य युग की किसी और सभ्यता ने स्वास्थ्य और सफाई को इतना महत्व नहीं दिया जितना हड़प्पा संस्कृति ने लोगों ने दिया
मोहेनजोदड़ों
- सबसे महत्वपूर्ण
·
विशाल स्नानागार
- दुर्ग के टीले
में हैं धार्मिक अनुष्ठान के लिए किया जाता था
- 11.88 * 7.01 *
2.43 मीटर
- दोनों सिरों पर
ताल तक सीढ़ियाँ बनी हुई थी
- फर्श पकी ईंटों
का बना हैं
- पास के कमरे में
बड़ा सा कुआं हैं
- इससे पानी
निकालकर हौज में डाला जाता था
- हौज के कोने पर
निर्गम मुख हैं जिससे पानी नाहकर नाले में जाता था
·
अनाज रखने का कोठार
- सबसे बड़ी इमारत
- 45.77*15.23
मीटर
- जल निकास प्रणाली अदभुत थी
- हर घर में प्रांगण व स्नानागार होते थे
- घरों का पानी बहकर सड़कों तक जाता था जहां नीचे
मोरियाँ बनी होती थी
- मोरियाँ ईंटों और पत्थर कि सिल्लियों से ढकी रहती थी
- मोरियाँ ईंटों और पत्थर कि सिल्लियों से ढकी रहती थी
- मोरियों में
मेनहोल भी थे
हड़प्पा
- कोठार मिले हैं
·
6 -6 कोठार दो पंक्तियों में हैं
·
प्रत्येक 15.23*6.09 मीटर
·
कुल 12 कोठार => इनका कुल क्षेत्रफल = 836.1025 मीटर2
- मोहेंजोदड़ों के
कोठार के बराबर
·
ईंटों के चबूतरे पर बने हैं
·
नदी के किनारे के पास हैं
- कोठार के दक्षिण में खुला फर्श हैं
·
इस पर दो कतारों में वृत्ताकार चबूतरे
- इसका उपयोग फसल
दावने के लिए होता था => फर्श की दरारों में गेंहू व जौ के दाने
मिले हैं
- दो कमरों वाला बैरक मिला हैं जो मजदूरों के रहने के लिए था
- निकास प्रणाली भी विलक्षण हैं
कालीबंगा
- नगर के दक्षिण में ईंटों के चबूतरे मिले हैं जो कोठारों के लिए हैं
- अनेक घरों में अपने अपने कुएं थे
बनावली
- नालियों व मोरियों के अवशेष मिले हैं
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