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Monday, August 20, 2018

वैदिक सभ्यता (Part-4): उत्तर वैदिक कालीन जीवन

राजनीतिक स्थिति 
वेदिक काल 


इस काल में पहली बार क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ

कबीले पर शासन करने वाला अब उस पर देश का राजा हो गया 

राजा की देवी उत्पत्ति का सिद्धांत सर्वप्रथम एतरेय ब्राह्मण में मिलता हैं 

राजा का पद वंशानुगत हो गया था 

राज्य का आकार बढ़ा , जिससे राजा का महत्व बढ़ा और उसके अधिकारों का विस्तार हुआ , अब राजा को सम्राट, एकराट और अधिराज नाम से पुकारा जाने लगा 

सभा व समिति का प्रभाव कम हो गया हुआ, विदथ का नाम खतम हो गया 

सभा और समिति में प्रभाव शाली लोगो का वर्चस्व हो गया 

सभा में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित हो गया 

आरंभ में पांचाल एक कबीले का नाम था परंतु बाद में यह प्रदेश का नाम हो गया 

पांचाल सर्वाधिक विकसित राज्य था 

शतपथ ब्राह्मण के अनुसार राजा का राज्यभिषेक राजसूय यज्ञ द्वारा संपन्न होता था 

यजुर्वेद में राज्य के उच्च पदाधिकारियों को रत्नी कहा जाता था , जिसमे राजा के संबंधी, मंत्री, विभागाध्यक्ष, और  दरबारी गण आते थे । 

12 प्रकार के रत्नियाँ
12 प्रकार के रत्नियाँ



राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था 

ब्राह्मण को मृत्युदंड नहीं दिया जाता था 

बलि पहले एक स्वेच्छा से दिया जाने वाला कर था जो अब एक नियमित कर हो गया, इसकी मात्रा 1/16 भाग होती थी 

शासन व्यवस्था 

एतरेय ब्राह्मण के अनुसार शासन व्यवस्था
शासन व्यवस्था



आर्थिक स्थिति 

इस काल में पशुपालन की जगह कृषि मुख्य पेशा हो गया था 

शतपथ ब्राह्मण में कृषि से संबंधित चारों क्रियाओं का - जुताई, बुआई, कटाई और मड़ाई क एउल्लेख किया गया है 

अब आर्य संपूर्ण गंगा घाटी में कृषि करने लगे थे 

इस काल में लोहे से बने उपकरणों के प्रयोग से कृषि क्षेत्र में क्रांति आ गई थी 

यजुर्वेद में लोहे को श्याम अयस एवं कृष्ण अयस कहा गया है 

धान प्रमुख फसल बन गई थी 

अतरंजीखेड़ा में पहली बार कृषि से संबंधित उपकरण प्राप्त हुए हैं 

उत्तर वैदिक काल में कृषि में विस्तार,  शिल्पों में कुशलता, व्यापार एवं वाणिज्य में विस्तार के परिणाम स्वरुप जन संख्या में वृद्धि हुई इ

चार तरह के बर्तन मिलते हैं :

1. काले व लाल रंग के मिश्रित मृदभांड 
2. काल रंग के मृदभांड 
3. चित्रित धूसर मृदभांड 
4. लाल मृदभांड 

Painted Grey Pottery and Red & Black Pottery


उत्तर वैदिक आर्यों को समुद्र का ज्ञान हो गया था, वैदिक ग्रन्थों में समुद्री यात्रा का विवरण मिलता हैं जो वाणिज्य और व्यापार का संकेत हैं 

ये लोग सोने और लोहे के अतिरिक्त टिन, तांबा, चाँदी, और सीसा से भी परिचित थे 

धातु शिल्प एक व्यवसाय था , धातु को गलाने का काम बड़े पैमाने पर  होता था 

तांबे को गला कर विभन्न वस्तुएं बनाई जाती थी 

वस्त्र निर्माण भी एक विकसित व्यवसाय हो गया था 

सिक्के अभी तक प्रचलन में नहीं आए थे

माप की इकाई 

निष्क, शतमान पाद कृष्णल रत्तिका, गुंजा आदि

निष्क ऋग्वेदिक काल में एक स्वर्ण आभूषण होता था पर अब एक मुद्रा हो गया था

ऋण


जीवन के ऋण 

प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में तीन ऋण चुकाने होते हैं

1. पितृ ऋण : संतान उत्पन्न कर व्यक्ति एक ऋण से मुक्त होता था

2. ऋषि ऋण : अपने पुत्र को शिक्षित कर व्यक्ति इस ऋण से मुक्त होता था

3. देव ऋण : धार्मिक अनुष्ठान एवं यज्ञ करके व्यक्ति इस ऋण से मुक्त होता था


धार्मिक स्थिति

उत्तर वैदिक काल में कर्मकांडों का उद्देश्य मूल्य तथा भौतिक सुखों को प्राप्त करना था 

गंगा यमुना दोआब आर्य संस्कृति का केंद्र स्थल बन गया था 

यज्ञ संस्कृति का मूल था 

यज्ञ के साथ-साथ अनेकानेक अनुष्ठान व मंत्र विधियों का भी प्रचलन था 

ऋग्वेदिक काल के दो सबसे बड़े देवता इंद्र एवं अग्नि अब उतने प्रमुख नहीं रहे 

अब प्रजापति (सृजन के देवता ) सर्वोच्च हो गए 

दो अन्य प्रमुख देवता रुद्र (पशुओं के देवता ) व विष्णु (लोगों के पालक) माने जाते थे 

स काल में वर्ण व्यवस्था कठोर हो गयी 

कुछ वर्णों के अलग अलग देवता हो गए 

पूषन जो पशुओं के देवता थे अब शूद्रों के देवता हो गए 

इस काल में दो महाकाव्य थे 

1. महाभारत : इसका पुराना नाम जयसहिंता था यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है 


महाभारत

2. रामायण : दूसरा महाकाव्य है 


रामायण 


इस काल में मूर्ति पूजा के आरंभ होने का आभास मिलता है 

अब प्रत्येक वेद के अपने पुरोहित हो गए थे :


वेद और उनके पुरोहित



उत्तर वैदिक काल में बहुदेव वाद , वासुदेव संप्रदाय एवं षडदर्शनों का बीजारोपण हुआ 

षडदर्शनों (सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, और वेदान्त )


षडदर्शन 

मीमांसा को पूर्व मीमांसा और वेदांत को उत्तर मीमांसा के नाम से जाना जाता है 



दर्शन और उनके प्रवर्तक 


मृत्यु की चर्चा शतपथ ब्राह्मण में और मोक्ष की चर्चा उपनिषद में मिलती है 

परीक्षित को मृत्युलोक का देवता कहा गया है 

पुनर्जन्म की अवधारणा बृहदारण्यक उपनिषद में मिलती हैं 

शतपथ ब्राह्मण में सर्व प्रथम स्त्रियॉं को अर्धांगिनी कहा गया है 

उपनिषद में यज्ञों और कर्मकांडों की निंदा की गयी हैं और ब्रह्म की एक सत्ता स्वीकार की गयी हैं 

प्रमुख यज्ञ 


प्रमुख यज्ञ 

छांदोग्य उपनिषद में केवल तीन आश्रमों का उल्लेख मिलता है 
--->>ब्रह्मचर्य , गृहस्थ और वानप्रस्थ 

परंतु बाद में जबालोपनिषद में सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है

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