वैदिक सभ्यता भारत की प्राचीन सभ्यता है जिसमें वेदों की रचना हुई है
यह वेद शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है = ज्ञान
वैदिक संस्कृति के निर्माता आर्य थे
आर्य शब्द का अर्थ = श्रेष्ठ, उत्तम, अभिजात, कुलीन, तथा उत्कृष्ट
आर्यों की भाषा = संस्कृत
संस्कृति को दो भागों में बांटा गया है
1. ऋग्वेदिक काल 1500 से 1000 ईसापूर्व
2. उत्तर वैदिक काल 1000 से लेकर 600 ईसवी पूर्व
आर्यों का मूल निवास स्थान और पहचान
आर्य लोगों के बारे में बता पाना कठिन हैं
वे हिन्द यूरोपीय परिवार की भाषाएँ बोलते थे, जो अपने परिवर्तित रूपों में आज भी समूचे यूरोप और ईरान में तथा भारतीय उपमहादेश के अधिकतर भागों में बोली जाती हैं
मूल निवास
आल्प्स पर्वत के पूर्वी क्षेत्र में जो यूरेशिया कहलाता हैं कहीं पर था
इनके जीवन में घोड़े का सबसे अधिक महत्व था
घोड़े की रफ्तार के कारण ये लोग भारत के आगमन के क्रम में ये लोग मध्य एशिया और ईरान पहुंचे
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ऋग्वैदिक व उत्तर वैदिक काल |
आर्यों का मूल निवास स्थान और पहचान
आर्य लोगों के बारे में बता पाना कठिन हैं
वे हिन्द यूरोपीय परिवार की भाषाएँ बोलते थे, जो अपने परिवर्तित रूपों में आज भी समूचे यूरोप और ईरान में तथा भारतीय उपमहादेश के अधिकतर भागों में बोली जाती हैं
मूल निवास
आल्प्स पर्वत के पूर्वी क्षेत्र में जो यूरेशिया कहलाता हैं कहीं पर था
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आर्यों का मूल स्थान |
इनके जीवन में घोड़े का सबसे अधिक महत्व था
घोड़े की रफ्तार के कारण ये लोग भारत के आगमन के क्रम में ये लोग मध्य एशिया और ईरान पहुंचे
ऋग्वेदिक काल
ऋग्वैदिक संहिता की रचना इस काल में हुई थी अतः यह इस काल की जानकारी का एकमात्र साहित्यिक स्रोत है
आर्यों का आरंभिक जीवन पशु पालन पर आधारित थे , कृषि उनके लिए गौण था।
यह सभ्यता ग्रामीण थी , (जबकि सिंधु सभ्यता नगरीय जीवन पर आधारित थी )
ऐसा माना जाता हैं आर्य लोग ईरान से होकर भारत आए थे क्योंकि एशिया माइनर के अभिलेखों में वैदिक सभ्यता के देवी देवताओं का उल्लेख मिलता हैं
इसके अलावा ऋग्वेद के अनेक बातें की ईरानी ग्रंथ अवेस्ता से मिलती हैं
भौगोलिक विस्तार
ऋग्वेद में सप्त सैंधव प्रदेश का उल्लेख हैं जिसका अर्थ है - सात नदियों का क्षेत्र
ये नदियां हैं -
सिंधु
सरस्वती
शतूद्री (सतलज )
विपासा (व्यास )
परूष्णी (रावी)
वितस्ता (झेलम )
अस्किनी (चिनाब )
आर्यों का विस्तार अफगानिस्तान, पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश तक था
ब्रहमवर्त
सतुलज से यमुना तक का क्षेत्र को कहा जाता था
मनुस्मृति में के अनुसार सरस्वती और दृशदती नदियों के बीच के क्षेत्र को प्रदेश को ब्रहमवर्त कहा गया हैं
इसे ऋग्वैदिक सभ्यता का केंद्र माना जाता था
गंगा व यमुना के दोआब क्षेत्र एवं उसके सीमावर्ती क्षेत्र पर भी आर्यों ने कब्जा कर लिया जिसे ब्रहमर्षि देश कहा गया हैं
कालांतर में संपूर्ण उत्तर भारत में आर्यों ने विस्तार कर लिया जिसे आर्यवर्त कहा जाता है
नदियां
वैदिक सभ्यता में 31 नदियों का उल्लेख मिलता है जिनमें से ऋग्वेद में 25 नदियों का उल्लेख किया गया है
पर ऋग्वेद के नदी सूक्त में केवल 21 नदियों का वर्णन किया गया है
इस काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिंधु थी है जिसे देवीतमा, मातेतमा, नदीतमा कहा गया है
ऋग्वेद में गंगा नदी का एक बार जबकि यमुना नदी में तीन बार उल्लेख किया गया है
ऋग्वेद में हिमालय पर्वत और इसकी चोटी मुजवंत का उल्लेख किया गया है
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