- 9000-4000 ई पू में अवशेष मोटे तौर पाए गए हैं
- 9000 ई पू के आसपास हिम युग का अंत हुआ और जलवायु व शुष्क हो गयी
· पेड़ पौधों और जीव जंतुओं में परिवर्तन हुए और मानव नए क्षेत्रों की ओर अग्रसर हुए
- यह पुरा पाषाण और नव पाषाण के बीच का संक्रमण काल था
- इस युग के लोग शिकार करके, मछली पकड़कर और खाद्य वस्तुएं बटोर कर पेट भरते थे
=> आगे चलकर पशुपालन करने लगे => यह नव पाषाण की विशेषता हैं
- औज़ार विशिष्ट हैं
·सूक्ष्म औज़ार होते थे (जो पाषाण के होते थे)
- सर्वप्रथम सी.एल. कार्लाइल ने विंध्य क्षेत्र से लघु पाषाण के उपकरण खोजे
- इस काल के प्रमुख केंद्र हैं - बेतवा घाटी , सोन घाटी (मध्य प्रदेश), कृष्णा घाटी (कर्नाटक), बेलन घाटी (उत्तर प्रदेश) , नेवासा (महाराष्ट्र) इत्यादि
- आदमगढ़ (मध्य प्रदेश) और बागोर (राजस्थान ) से प्राप्त साक्ष्य पशुपालन को दर्शाते हैं । इस काल के लोगों ने सर्वप्रथम कुत्ते को पालतू पशु बनाया था ।
- इस काल मे मानव अस्थि पंजर का सबसे पहले अवशेष प्रताप गढ़ (उत्तर प्रदेश) के सराय नाहर राय तथा महदहा नमक स्थान से प्राप्त हुआ था
- राजस्थान में स्थित सांभर झील निक्षेप के कई मध्य पाषाणीक स्थल प्राप्त हुए हैं । यहाँ से विश्व के सबसे पुराने वृक्षारोपण का साक्ष्य मिलता हैं
प्राचीनतम कलाकृतियाँ
- चित्र = पुरापाषण व मध्य पाषाण के लोग चित्र बनाते थे
- भीमबेटका – मध्य प्रदेश में => भोपाल से 45 km दूर विन्ध्य पर्वत पर हैं
- 10 km2 में 500 से अधिक चित्रित गुफाएँ हैं
- पुरापाषण से मध्य पाषाण काल तक के चित्र
- अनेकों गुफाएँ मध्य पाषाण काल की हैं
- बहुत सारे पशु पक्षियों, मानव के चित्र हैं
+ अधिकतर पशु पक्षियों के हैं => इनका शिकार जीवन निर्वाह के लिए किया जाता था
+ अनाज पर जीने वाले पक्षी के चित्र नहीं मिले हैं
-चित्र आखेट व खाद्य संग्राहक पर आधारित हैं
- बेलन घाटी => मिर्जापुर जिले में
- विन्ध्य पर्वत के उत्तरी छोर पर
- पुरा पाषाण की तीनों अवस्थाएँ एक के बाद एक पायीं जाती हैं
- उसके बाद मध्य पाषाणिक फिर नव पाषाणिक अवस्थाएँ पायी जाती हैं
- नर्मदा घाटी => यहाँ बेलन घाटी वाली जैसी स्थिति हैं
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