- विश्व स्तर पर 9000 ई पू से आरंभ
- भारतीय उप महाद्वीप में प्राचीनतम नवपाषानिक बस्ती पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के मेहरगढ़ में मिली हैं जिसकी तिथि 7000 ई पू मानी जाती हैं
- यहाँ के लोग अधिक उन्नत थे। वे जौं, गेंहू उपजाते थे और कच्ची ईंटों के घर में रहते थे
- 5000 ई पू से पहले यहाँ के लोग मृदभांड का उपयोग नहीं करते थे
- इस काल के प्रमुख केंद्र हैं :
बेलन घाटी (उत्तर प्रदेश), रेनीगुंटा (आंध्रा प्रदेश) , सोन घाटी (मध्य प्रदेश) , सिंह भूमि (झारखंड ), इत्यादि
- विन्ध्य पर्वत के उत्तरी प्रष्ठ के नव पाषाण स्थल 5000 ई पू से पुराने नहीं है
- दक्षिण भारत में मिली बस्तियाँ 2500 ई पू से पुरानी नहीं हैं
- दक्षिण व पूर्व के कुछ स्थल 1000 ई पू से हैं
- इनके पालिशदार पत्थर के औज़ार होते थे
- सूक्ष्म पाषाण फलकों का उपयोग करते थे, जिसमें खास तौर पर पत्थर की कुल्हाड़ियों का इस्तेमाल होता था, ये देश के अनेक भागों में पाई गयी हैं
- ये सबसे पुराने कृषक समुदाय के थे। पत्थर की कुदालों(हो) और खोदने के डंडों से जमीन खोदते थे। डंडों में एक ओर 1-0.5 kg के पत्थर के छल्ले बने होते थे
- मिट्टी व सरकंडों के बने गोलाकार या आयताकार गोलाकार या आयताकार घरों में रहते थे। गोलाकार घरों में रहने वालों की संपत्ति पर सामुदायिक स्वामित्व रहता था। ये लोग स्थायी रूप से घर बनाकर रहते थे । ये लोग रागी और कुल्थी पैदा करते थे
- नव पाषाण के लोग खेती करते थे और पशु पालते थे
- अनाज रखने के लिए बर्तनों की आवश्यकता हुई। पकाने, पीने, खाने के लिए पात्रों की आवश्यकताएँ हुई, तब कुंभकारी का विकास इस काल में हुआ।
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कुभकारी का विकास इस काल में हुआ |
- हाथ से बनाए मृदभांड दिखते हैं, बाद में चाक पर बर्तन बनने लगे। इन बर्तनों में पालिशदार काला मृदभांड, धूसर मृदभांड और चटाई की छाप वाले मृदभांड शामिल हैं
- नव पाषाण के सेल्ट, कुल्हाड़ियों, बसूले, छेनी => उड़ीसा और छोटा नागपूर के पहाड़ी इलाकों में मिले हैं
- 9000-3000 ई पू के बीच पश्चिम एशिया में भारी प्रगति हुई। तब खेती, बुनाई, कुंभकारी, भवन निर्माण, पशुपालन, लेखन, आदि का कौशल विकसित हुआ
- पर भारत में देरी से विकसित हुई
- भारत में नव पाषाण 6000 ई पू से शुरू हुआ। चावल, गेंहू, जौ, इस अवधि से उपजाने लगी। कई गाँव बसे
- यहाँ आकर मानव ने सभ्यता के द्वार पर पाँव रखा
- प्रस्तर युग के लोग पत्थर के औजारों व हथियारों पर आश्रित थे। इसलिए वे पहाड़ी इलाकों से जाकर वस्तियाँ नहीं बना सकते थे। पहाड़ियों के ढलानों, गुफाओं, पहाड़ियों युक्त नदी घाटियों में ही अपना निवास बना सके। ये सिर्फ उतना ही अनाज पैदा कर सकते थे, जिनमें ये किसी तरह अपना जीवन बसर कर सकें
नव पाषाण युग की वस्तियाँ
कुल्हाड़ियों के आधार पर तीन महत्वपूर्ण क्षेत्र:
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कुल्हाड़ियों के आधार पर नव पाषाण काल के प्रमुख तीन क्षेत्र |
प्रमुख महत्वपूर्ण स्थल जिनक हाल में ही उत्खलन हुआ हैं
- कर्नाटक => मस्की, ब्रहमगिरी, हल्लुर, कोडक्कल, पिकलीहल, संगेनकल्लु, टी. नरसीपुर व टेककलककोट
- पिकलीहल => कर्नाटक में
- निवासी पशुपालक हैं
- गाय, बैल, बकरी, भेड़ आदि पालते थे
- खंभे और खूँटे गाड़कर मवेशी के वाड़े बनाते थे और उनके बीच में मौसमी शिवरों में रहते थे। बाड़ों में गोबर जमा करते थे। फिर उस शिविर में आग लगा देते थे ताकि अगले मौसम में फिर शिविर लगा सकें
- पिकलीहल में राख़ के ढेर व निवास स्थल मिले हैं
- तमिलनाडू => पैयमपल्ली
- आन्ध्रप्रदेश => उतनूर => एक महत्वपूर्ण नव पाषाण स्थल
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