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Wednesday, March 20, 2019

मौर्य साम्राज्य: चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, अशोक,


स्थापना : चन्द्र गुप्त मौर्य के द्वारा

मौर्य राजवंश (३२२-१८५ ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। इसने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया।


मौर्य साम्राज्य Maurya Dynasty 



यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। 

चन्द्रगुप्त मौर्य ने ३२२ ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया। उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। 

३१६ ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था।अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ।

मौर्य साम्राज्य के रूप मे पहली बार भारत में एक अखिल भारतीय साम्राज्य का निर्माण हुआ, मौर्य राजवंश में चन्द्र गुप्त, बिन्दुसार, अशोक जैसे महान शासक हुए, जिनके प्रयासों से राज्यों का सर्वांगीण विकास हुआ। राजनीतिक प्रणाली में अपेक्षाकृत अधिक एकरूपता आ गयी। 

कौटिल्य का अर्थशास्त्र, बौद्द रचनाएँ दीपवंश एवं महावंश, वायुपुराण जैन साहित्य, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, अशोक के शिलालेख, तथा यूनानी लेखकों नियार्कस, अनासिक्रिट्स, तथा मेगस्थनीज का विवरण मौर्य साम्राज्य के स्त्रोत हैं 

चन्द्रगुप्त मौर्य : (321 -298 ई पू ) 
चन्द्रगुप्त मौर्य 
ब्राह्मण परंपरा के अनुसार माता शूद्र वंश की थी जो नंदों के वास में रहती थी। पुरानी बौद्ध परंपरा के अनुसार नेपाल के तराई से लगे गोरखपुर में मौर्य नामक क्षत्रिय कुल के लोग रहते थे। चन्द्र गुप्त इसी वंश का था

 नंदों की कमजोरी और बदनामी का फायदा उठाते हुए चन्द्रगुप्त ने कौटिल्य नामक चाणक्य की सहायता से नंदों (घनानन्द) को पराजित किया और मौर्य शासन स्थापित किया

Ø  मुद्राराक्षस     : विशाखदत्त द्वारा 9वी सदी में रचित नाटक
            : चाणक्य की चालों का विस्तृत वर्णन

जस्टिन नामक यूनानी लेखक ने अनुसार चन्द्रगुप्त ने 6,00,000 की फौज से सारे भारत को रौंद दिया।  

300 ई पू में चन्द्रगुप्त ने तत्कालीन शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया और पश्चिमोत्तर भारत को सेल्यूकस की गुलामी से मुक्त कराया (सिंधु नदी के पश्चिम वाला इलाका)। 

 यूनानी वायसराय के साथ हुई लड़ाई में चन्द्रगुप्त विजयी रहा > > दोनों में समझौता >> चन्द्रगुप्त से 500 हाथी लेकर सेल्यूकस ने उसे पूर्वी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंधु के पश्चिम का क्षेत्र दे दिया >>> चन्द्रगुप्त का विशाल साम्राज्य स्थापित >>> पूरा बिहार तथा उड़ीसा और बंगाल के बड़े भागो के अतिरिक्त पश्चिमी और उत्तर-पश्चमी भारत और दक्कन

बंगाल पर चन्द्रगुप्त की विजय महास्थान अभिलेख से प्राप्त होती हैं। दक्षिण भारत पर विजय की जानकारी तमिल ग्रंथ अहनानूर और पुरानानूर तथा अशोक के अभिलेख से प्राप्त होती हैं 

मौर्यो का शासन तमिलनाडू व पूर्वोत्तर भारत के कुछ भागों को छोड़कर सारे भारत उपमहादेश में था और उत्तर पश्चिम में ऐसे इलाको पर भी राज था जिन पर ब्रिटिश राज भी न था। 

चन्द्रगुप्त ने सुदर्शन झील (गिरनार क्षेत्र) का निर्माण करवाया। तथा अशोक ने ई पू तीसरी शताब्दी में इससे नहरें निकाली। शक क्षत्रप रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख में इन दोनों के कार्यों का विवरण हैं । 

सेहगौरा ताम्रपत्र तथा महस्थान अभिलेख चन्द्रगुप्त मौर्य से संबधित हैं । ये अभिलेख अकाल समय में किए जान एवाले राहत कार्यों के बारे में विवरण देते हैं। 

अपने जीवन के अंतिम समय में पुत्र के पक्ष में सिहान्सन छोड़कर चन्द्र गुप्त मौर्य ने जैन साधू भाद्र बाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली और श्रवणबेलगोला (मैसूर) जाकर 298 ई पू में उपवास द्वारा शरीर त्याग दिया।
 
Ø  मेगास्थनीज : यूनान का राजदूत
             : सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा
             : मौर्यों की राजधानी पाटलिपुत्र में रहा
             : सारे मौर्य साम्राज्य का विवरण लिखा >> विवरण पूरा – पूरा नहीं बचा >>>                 इससे लिए कुछ उदाहरण परवर्ती यूनानी लेखकों की पुस्तकों में आए है >> इन               सब टुकड़ों को जोड़कर इंडिका के नाम से प्रकाशित किया गया

Ø  कौटिल्य अथवा कौटिल्य अथवा विष्णु गुप्त 
कौटिल्य या चाणक्य 
: ने अर्थशास्त्र लिखी जो राजव्यवस्था पर उपलब्ध प्राचीनतम रचना हैं
  : अर्थशास्त्र ने मेगस्थनीज के विवरण को परिपूरित किया 
  : अंतिम रूप मौर्य शासन के  कई सदियों बाद किया गया







बिन्दुसार ( 298-273 ई पू )
बिन्दुसार 

चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार गद्दी पर बैठा। यूनानी लेखों में इसे अमित्रोचेटस (जिसका संस्कृत रूपान्तरण अमित्रघात है), वायुपुराण में भद्रसार तथा जैन ग्रन्थों में सिंहसेन कहा गया है 

अमित्रघात = शत्रुओं का नाश करने वाला 

बौद्द ग्रन्थों दिव्यवदान के अनुसार, बिन्दुसार के समय में तक्षशिला में अमात्यों के विरुद्द दो विद्रोह हुए, जिसका दमन करने के लिए पहली बार उज्जैन के प्रशासक अशोक तथा दूसरी बार सूसीम को भेजा गया। 

एथिनियस नाम एक अन्य यूनानी लेखक ने बिन्दुसार तथा सीरिया के शासक एण्टीयोकस प्रथम के बीच मैत्री पूर्ण विवाह का वर्णन दिया, जिसमें भारतीय शासक ने तीन वस्तुओं की मांग की थी - मदिरा, मीठी अंजीर तथा दार्शनिका 

सीरियाई सम्राट ने प्रथम दो वस्तुएं तो बिजवाई पर तीसरी के संदर्भ में कहा कि दार्शनिकों का विक्रय नहीं किया जा सकता।

सीरिया के शासक एण्टीयोकस ने डायमेकस को तथा मिस्र के शासक टोलेमी द्वितीय ने डायनोसियस नमक राजदूत मौर्य दरवार में भेजे थे। 

बिन्दुसार आजीवक समुदाय का अनुयाई था। 

अशोक ( 273-232 ई पू )
अशोक 

अशोक 273 ई पू में गद्दी पर बैठा पर उत्तराधिकार युद्द के कारण 4 वर्ष बाद 269 ई पू मे विधिवत राज्याभिषेक हुआ। महावंश के अनुसार, अशोक  अपने 99 भाइयों को कत्ल करके राजगद्दी पर बैठा, जिसमें मंत्री राधागुप्त ने सहायता की थी [अपने सौतेले भाई सुसीम (सुमन) को गद्दी से हटा कर गद्दी प्राप्त की]। अशोक पहले उज्जैन तथा तक्षशिला का गवर्नर था।

 पिता : बिन्दुसार
माता : शुभद्रांगी, ये चम्पा (अंग) की राजकुमारी थी

अशोक मौर्य राजाओं में सबसे महान राजा था। 

अशोक अपने अपने आरंभिक जीवन में परम क्रूर था

अशोक ने कश्मीर और खेतान पर अधिकार किया। कश्मीर में अशोक ने श्रीनगर की स्थापना की।

राज्याभिषेक के 9वे वर्ष (261 ई पू) अशोक ने कलिंग पर अधिकार किया। कलिंग के हाथी गुफा के अभिलेख के अनुसार कलिंग पर उस समय नंदराज नाम का शासक राज करता था।

अशोक के बाद कुणाल, दशरथ, संप्रीति शालिशूक, देववर्मा, तथा बृहद्रथ अंतिम मौर्य सम्राट था।  पुष्यमित्र शुंग ने बृहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की नींव रखी।

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