प्रारम्भिक मध्यकालीन भारत (750-1200 ई): तीन साम्राज्य का युग-PART -3:
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प्रारम्भिक मध्यकालीन भारत (750-1200 ई): तीन साम्राज्य का युग-PART -3:राष्ट्रकूट वंश |
राष्ट्रकूट वंश
जब उत्तरी भारत में पाल और प्रतिहार वंशों का शासन था, दक्कन में राष्टूकूट राज्य करते थे। इस वंश ने भारत को कई योद्धा और कुशल प्रशासक दिए हैं।
इस साम्राज्य की नींव 'दन्तिदुर्ग' ने डाली। दन्तिदुर्ग ने 750 ई. में चालुक्यों के शासन को समाप्त कर आज के शोलापुर के निकट अपनी राजधानी 'मान्यखेट' अथवा 'मानखेड़' की नींव रखी। शीघ्र ही महाराष्ट्र के उत्तर के सभी क्षेत्रों पर राष्ट्रकूटों का आधिपत्य हो गया।
गुजरात और मालवा के प्रभुत्व के लिए इन्होंने प्रतिहारों से भी लोहा लिया। यद्यपि इन हमलों के कारण राष्ट्रकूट अपने साम्राज्य का विस्तार गंगा घाटी तक नहीं कर सके तथापि इनमें उन्हें बहुत बड़ी मात्रा में धन राशि मिली और उनकी ख्याति बढ़ी।
वंगी (वर्तमान आंध्र प्रदेश) के पूर्वी चालुक्यों और दक्षिण में कांची के पल्लवों तथा मदुरई के पांड्यों के साथ भी राष्ट्रकूटों का बराबर संघर्ष चलता रहा।
राष्ट्रकूटों मे गोविंद तृतीय (793-814 ई) और अमोघवर्ष (814-878 ई) महान राजा हुए। गोविंद तृतीय ने प्रतिहार राजा नागभट्ट को हराया था। गोविंद तृतीय ने श्रीलंका पर सफल चड़ाई की , उसने श्रीलंकाई शासकों के इष्टदेवों की दो मूर्तियों को मान्यखेत मे विजयस्तंभों के रूप मे लगवा दिया
अमोघवर्ष के बाद साम्राज्य को इसके पोते इन्द्र तृतीय (915-927) ने संभाला , वो भी एक महान राजा हुआ। उसने महिपाल को हारा कर अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजा के रूप मे अपनी पहचान बनाई।
राष्ट्रकूट के अंतिम महान राजा कृष्ण तृतीय (929-965) थे, उसने चोल शासक परंतक प्रथम को पराजित किया और रामेश्वरम में विजयस्तंभ और मंदिर बनवाए।
कृष्ण तृतीय के मौत के बाद राष्ट्रकूटों के उत्तराधिकारी के खिलाफ सभी विरोधी एक साथ हो गए और उन्होने 972 ई मे मान्यखेत पर हमला कर कर उसे जला कर नष्ट कर दिया ।
एलोरा का विश्व प्रसिद्द मंदिर राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने 9वी सदी मे बनवाया था, कृष्ण प्रथम का उत्तरदिकारी अमोघवर्ष सम्भवत: जैन था ।
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एलोरा का मंदिर(Ellora Kailash Temple) |
अमोघवर्ष को काव्यशास्त्र पर कन्नड की प्रथम रचना का श्रेय दिया जाता है ।
राष्ट्रकूटों ने मुसलमान व्यापारियों को अपने राज्य में बसने की इजाजत और इस्लाम के प्रचार की भी छूट दी थी
इसी समय भारत आने वाले यात्री अल मसूदी के अनुसार 'बल्लभराज या बल्हर भारत का सबसे महान् राजा था और अधिकतर भारतीय शासक उसके प्रभुत्व को स्वीकार करते थे और उसके राजदूतों को आदर देते थे।
उसके पास बहुत बड़ी सेना और असंख्य हाथी थे।
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