जहांदर शाह (1712-13)
जहांदार शाह(1712-1713) हिन्दुस्तान का मुगल सम्राट था। इसने यहां 1712-1713 तक राज्य किया। बहादुरशाह का ज्येष्ठ पुत्र जहाँदारशाह था जो 1661 में उत्पन्न हुआ। पिता की मृत्यु के पश्चात् सत्ता के लिये इसे अपने भाइयों से संघर्ष करना पड़ा।
जुल्फिकार उस समय का सबसे शक्तिशाली सामंत था। मीर बख्शी जुल्फिकार खाँ का जहांदार शाह को समर्थन था और उसने जहांदार शाह को सहायता दी। जहांदार शाह का एक भाई अजीम-अल-शान लाहौर के निकट युद्ध में मारा गया। शेष दो भाइयों- जहानशाह और रफी-अल-शान को पदच्युतकर सम्राट् बनने में यह सफल हुआ।
इस तरह पहली बार महत्वाकांक्षी सामंत सत्ता के सीधे दावेदार बने। उन्होने गद्दी हथियाने के लिए शहजादों का इस्तेमाल किया।
जहांदार शाह के कमजोर और पतित शहजादा था। उसमे सहव्यवहार, बड़प्पन और शिष्टाचार की कमी थी। विलासी प्रकृति के जहाँदारशाह ने समूचे राज्य के प्रति उपेक्षा बरती।
इस तरह प्रशासन सीधे जुल्फ़ीकार खाँ के हाथों मे आ गया जो एक योग्य और कर्मठ आदमी था।
जुल्फिकार खाँ वजीर बना । उसने निम्न कार्य किए :
- उसने जज़िया कर को खत्म किया। आमेर के जय सिंह को मिर्जा सवाई की पदवी प्रदान की और उसे मालवा का सूबेदार बनाया। मारवाड़ के अजित सिंह को महाराजा की पदवी और उसे गुजरात का सूबेदार बनाया। मराठा शासक को दक्कन की चौथ वसूलने का अधिकार दिये।
- मराठो को सरदेशमुखी के अधिकार इस शर्त पर दिये कि वसूली मुगल शासक करेंगे। यह व्यवस्था दक्कन मे सहायक दाऊद ख़ान की पत्नी ने ने 1711 में मराठा राजा साहू के साथ में की थी।
- चूरामन जाट और छत्रसाल बुंदेला से मेल मिलाप की नीति अपनाई। बंदा और सिखों के साथ दमन के नीति पर कायम रहा ।
- जागीरों और ओहदों की अंधाधुंध वृद्दि पर रोक लगाई । मंसबदारों को अधिकृत संख्या में फौज रखने पर मजबूर किया।
- ईज़ारा व्यवस्था को बढ़ावा दिया जो टोडरमल की भू – राजस्व व्यवस्था पर आधारित था। इजारेदार लगान के ठेकेदार होते थे। उसने इजारेदार और विचोलियों के साथ करार किया। इसके तहत ईजारेदार सरकार को एक निश्चित राशि देंगे और इजारेदार को किसान से जितना चाहे लगान वसूलने का अधिकार मिल गया। पर इस वजह से किसानों का उत्पीड़न बढ़ा
अनेक लोगों ने बादशाह के कान भरे और जुल्फिकार खान के खिलाफ षड्यंत्र किया । इस तरह बादशाह ने जुल्फिकार खान को अधिक सहयोग नहीं दिया।
1712 में अब्दुल्लाखाँ, हुसेन अलीखाँ और फर्रुखसियर ने इसके विरुद्ध पटना से कूच किया। आगरा में जहाँदारशाह ने टक्कर ली। 1713 में फर्रुखसियर के हाथों हार मिली।
पराजित होकर इसने दिल्ली
में जुल्फिकार खाँ के पिता असदखाँ के यहाँ शरण ली। असदखाँ ने इसे दिल्ली के किले
में कैद कर लिया। फर्रुखसियर ने विजयी होते ही इसकी हत्या करवा दी।
जहांदार शाह को लम्पट मुर्ख भी कहा जाता था । इसे लम्पट मुर्ख की उपाधि इतिहासकार 'इरादत खां' ने प्रदान की
No comments:
Post a Comment