पृथ्वी : 400 करोड़ वर्षों से अधिक पुरानी हैं
इसके परत के विकास की चार अवस्थाएँ हैं जिसमें
- चौथी अवस्था => चातुर्थिकी (Quaterny)
अतिनुतन और अद्यतन काल
पुरापाषाण युग की अवस्थाएँ : पत्थर के औजारों के स्वरूप और जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर तीन
अवस्थाएँ हैं:
निम्न पाषाण
युग (आरंभिक)
|
मध्य पाषाण
युग
|
ऊपरी पाषाण
युग
|
500,000 ई पू -50,000 ई पू
|
50,000- 40,000 ई पू
|
40,000 – 10,000 ई पू
|
अधिकांश भाग हिम युग से गुजरा है। इसका लक्षण है
कुल्हाड़ी या हस्त कुठार, विदारणी(क्लीवर), खंडक(चौपर) का उपयोग
|
- पत्थर की पपड़ी से बनी वस्तुएं
- ये पपड़ियाँ सारे भारत में पायी गयी हैं
- इनमें क्षेत्रीय भेद हैं
|
- इस युग में आद्रता कम थी
- हिम युग कि अंतिम अवस्था
- जलवायु गरम हो गयी थी
|
पत्थर के औज़ार मुख्यत: काटने, खोदने और छीलने के काम आता था
|
मुख्य औज़ार :
- पपड़ियों से बने फ़लक, वेधनी, छेदनी और खुरचनी
|
नए चकमक उद्योग की स्थापना हुई
|
पाकिस्तान की सोहन घाटी में कश्मीर और थार
मरुभूमि में आरंभिक पुरास्थल पाये गए हैं
|
मोटे तौर उसी क्षेत्र में मिले हैं जहां आरंभिक
पुरापाषाण स्थल मिले हैं
|
आधुनिक मानव (homosapiens) का उदय
|
कई स्थल कश्मीर व थार मरुभूमि में मिले हैं
|
सरल वाटिकाश्म उद्योग (पत्थर के गोलों से वस्तुओं
का निर्माण) मिलता है
|
40,000-15,000 ई औ के बीच दक्कन के पठार में मध्य व ऊपरी-पुरापाषाण युग, दोन्न दोनों के औज़ार मिले हैं
|
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बेलन घाटी
में पाये गए हैं
|
|
|
जो औज़ार राजस्थान की मरुभूमि के दिदवाना क्षेत्र
में, बेलन और नर्मदा घाटियों में तथा मध्य प्रदेश के पास भीमबेटका कि गुफाओं
और शैलश्रयों में मिले हैं
ये 100,000 ई पू के हैं
|
इस युग की शिल्प सामग्री नर्मदा नदी के
किनारे-किनारे कई स्थानों पर और तुंगभद्रा नदी के दक्षिण कई स्थानों पर भी पाई
जाती है
|
यह आंध्रा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार के पठार और उसके इर्द गिर्द पाये गए हैं
|
शैलश्रयों का उपयोग मानवों के ऋतुकालिक बसेरे के
रूप में किया जाता था
|
|
भीम बेटका में इस युग कि गुफाएँ मिली हैं
|
हस्तकुठार द्वितीय हिमालयीन अंतर्हिमावर्तन (Interglacial) के समय के
जमाव में मिले हैं
|
|
गुजरात के टिब्बों के ऊपरी तलों पर इस युग के
भंडार मिले हैं
|
इस अवधि में जलवायु में नमी कम हो गयी
|
|
शल्कों, फलकों, तक्षिनियों और खुरचियों का अधिक उपयोग
|
- देश के अनेकों पहाड़ी ढलानों और नदी घाटियों में पुरापाषाणीय स्थल पाये गए हैं
- सिंधु व गंगा के कछारी मैदानों में इनका पता नहीं हैं
पुरापाषण काल के स्थल
पुरापाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष सोहन नदी घाटी , बेलन नदी घाटी तथा नर्मदा नदी घाटी एवं भोपाल के पास भीमबेटका नमक चित्रित शैलश्रयों से प्राप्त हुये हैं
निम्न पाषाण काल
इसके उपकरण सर्वप्रथम सोहन नदी (सिंधु नदी की चोटी सहायक नदी ) घाटी से प्राप्त हुए हैं , इसी कारण से इस सोहन संस्कृति कहा जाता हैं
इस काल में पेबुल, पत्थर के वे उपकरण होते जो पानी के बहाब में रगड़ खाके चिकने और सपाट हो जाते थे
चॉपर, बड़े आकार वाल उपकरण हैं जो पेबुल से बनाया जाता था
चोपिंग उपकरण द्विधारी होते हैं अर्थात पेबुल के ऊपर दोनों किनारों को छीलकर धार बनाई जाती थी
मध्य पुरापाषण काल
इस काल में बहू संख्यक कोर, फ्लेक तथा ब्लेड उपकरण प्राप्त हुए हैं ।
फलकों की अधिकता के कारण मध्य पाषाण काल को फ़लक संस्कृति की संज्ञा दी जाती हैं
मध्य पाषाण काल के औजारों का निर्माण अच्छे प्रकार के क्वार्टजाइट पत्थर से किया जाता हैं
मध्य पुरापाषण काल के उपकरण महाराष्ट्र में नेवासा, झारखंड में सिंह भूमि , उत्तर प्रदेश में चकिया (वाराणसी), बेलन घाटी (इलाहाबाद) , मध्य प्रदेश के भीमबेटका गुफाओं तथा सोन घाटी , गुजरात में सौराष्ट्र क्षेत्र , हिमाचल में व्यास, वानगंगा तथा सिरसा घाटियों आदि विविध प्रस्थलों से प्राप्त होते है ।
उच्च पाषाण काल
इस काल का प्रमुख पाषणोंपकरण ब्लेड (Blade) हैं ।
ब्लेड पतले तथा सँकरे आकार वाला वह पाषाण फ़लक हैं जिसके दोनों किनारे समानान्तर होते हैं तथा जो लंबाई में अपनी चौड़ाई से दोगुना हो हैं
भारत में इस काल के उपकरण सोन घाटी (मध्य प्रदेश) , सिंह भूमि (झारखंड), जोगदहा , भीमबेटका , रामपुर , बघेलान , बाघोर (मध्य प्रदेश) , पटणे , भदणे, तथा ईनामगाँव (महाराष्ट्र) , रेनीगुंटा , वेमुला , कुर्नुल गुफाएँ (आंध्रा प्रदेश) , शोरापुर दोआब (कर्नाटक ) तथा बूढ़ा पुष्कर (राजस्थान) आदि से प्राप्त हुए हैं
![]() |
पुरापाषाण युग के मुख्य उपकरण |
No comments:
Post a Comment