गुप्त काल में बौद्द
धर्म को राजाश्रय मिलना समाप्त हो गया। जो उत्कर्ष अशोक और कनिष्क के दिनों में था
वह गुप्त काल में नहीं रहा ।
कुछ स्तूपों और
विहारों का निर्माण हुआ। महायान शाखा के अंतर्गत बोधिसत्व की प्रतिमाएँ बनाई जाने लगी।
इस काल के प्रमुख बौद्ध आचार्य वसुबंधु, असंग, और दिड्नाथ थे।
फाययन के अनुसार गुप्तकाल में कश्मीर , अफगानिस्तान और पंजाब
बौद्ध धर्म के केंद्र थे।
नालंदा बौद्द शिक्षा का
केंद्र बन गया
धर्म
गुप्त शासकों का
राजकीय धर्म वैष्णव था। उन्होने परमभागवत की उपाधि धारण की। तथा गरुड को अपना
राजकीय चिन्ह बनाया। दो गुप्त शासकों(समुद्रगुप्त और कुमारगुप्त) को अश्वमेघ यज्ञ
करने का श्रेय प्राप्त है। स्कंदगुप्त का जूनागढ़ अभिलेख तथा बुद्द्गुप्त का एरण
स्तंभलेख विष्णु की स्तुति से प्रारम्भ होता है।
गुओतकाल का वैष्णव
धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अभिलेख देवगढ़ (झाँसी) का पंचायतन श्रेणी का दशावतार मंदिर
है। इन मंदिर में विष्णु को शेषनाग पर विश्राम करते हुए दिखाया है।
त्रिमूर्ति के अंतर्गत गुप्तकाल
में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा शुरू हुई। अन्य देवताओं की तुलना मे देवी शाकित का
वैभव अधिक बढ़ गया। अर्धनारीश्वर के रूप में शक्ति और शिव दोनों का एकीकरण हुआ। पर
शक्ति की प्रधानता स्वीकार की गयी।
मंदसौर के अभिलेख में रेशम बुनकरों की श्रेणी द्वारा सूर्य मंदिर बंबाने और
मरम्मत का उल्लेख मिलता है। गुप्त शासक कुमार गुप्त के सिक्कों पर कार्तिकेय का
अंकन मिलता है।
भागवत
संप्रदाय का उदभव और विकास
इस धर्म का
केंद्र : भगवत या विष्णु
उदभव : मौर्योत्तर
काल में
वैदिक काल में विष्णु
गौण देवता था >> सूर्य का प्रतिरूप >>
उर्वरता पंथ का देवता >> 2वी सदी में नारायण के नाम से
पुजा जाने लगा >> नारायण-विष्णु कहलाने लगा
नारायण : अवैदिक
देवता >> भगवत कहलाता था >> उसका उपासक भागवत
भग : नारायण भग
अर्थात हिस्सा या भाग्य अपने भक्तों के बीच उनकी भक्ति के अनुसार बांटता है
विष्णु और नारायण के
एक होने पर दोनों उपासक भी धर्म की एक छत्रछाया में आ गए
बाद में दोनों कृष्ण
के साथ एक हो गए >> कृष्ण वासुदेव >> 200 ई पू
में कृष्ण की विष्णु से अभिन्नता दिखने के लिया महाभारत महाकाव्य को एक नया रूप
दिया गया
तीनों धाराएँ और तीनों
उपास्य देव मिलते मिलते एक हो गए >> भागवत या वैष्णव संप्रदाय
भागवत
संप्रदाय : मुख्य तत्व :
भक्ति : प्रेममय
निष्ठा निवेदन >> निष्ठा जो अपने अपने सरदार के प्रति
रखी जाती थी
अहिंसा : किसी जीव का
वध न करना
लोग विष्णु की प्रतिमा
की पुजा करते थे और जौं, तिल चढ़ाते थे >> जीव हत्या से घृणा के कारण बहुत से लोगों ने मांस मछली खाना छोड़ दिया
यह धर्म परम उदार >> इसलिए विदेशियों को भी अपनी ओर खींच लिया
कृष्ण ने भगवतगीता में
कहा कि अपवित्र स्त्री, शूद्र, वैश्य भी उनकी
शरण में आ सकते है >> इस गृन्थ में वैष्णव धर्म का
प्रतिपादन किया गया हैं >> विष्णु स्मृति में भी
प्रतिपादन.
गुप्तकाल में आकार महायान बौद्द धर्म की
तुलना में भागवत धर्म अधिक प्रबल हो गया >> इसने अवतरवाद का उपदेश दिया >> विष्णु के दस अवतारों के चक्र के रूप में प्रतिपादित किया गया >> प्रत्येक अवतार को धर्म के उद्दार के लिए आवश्यक माना गया।
6वी सदी में विष्णु की
गणना शिव और ब्रह्मा के साथ त्रिदेव में होने लगी >> अनेक पुस्तकें
लिखी गयी >> भागवतपुराण >> इसकी कथा का प्रवचन कई दिनों में सम्पन्न करते थे >> भागवत-घर में विष्णु की पुजा और उनकी लीलाओं का कीर्तन होता था >> विष्णु के उपासको के लिए विष्णुसहस्त्रनाम आदि बहुत से स्त्रोत
लिखे गए
शिव : गुप्तकाल
के कुछ राजा शिव के उपासक थे >> संहार या प्रलय के देवता >> पर शी का उत्कर्ष बाद में >> शिव उतने
महत्वपूर्ण नहीं जीतने विष्णु
मूर्तिपूजा : सामान्य लक्षण
हो गयी
बौद्द और जैन धर्म को
सताये जाने के उदाहरण नहीं मिलते हैं क्योंकि ब्राह्मण धर्म के बहुत तत्वों को
बौद्द धर्म में अपना लिया गया था ।
कलाएं
Ø गुप्त युग में
विभिन्न कलाओं – मूर्तिकला, वास्तुकला, संगीत और
नाट्य कला के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति की।
Ø मथुरा,
सारनाथ, तथा पाटलीपुत्र मूर्तिकला के निर्माण के प्रमुख
केंद्र थे। स्थापत्य और चित्रकला के विकास की चरम सीमा भी गुप्त काल में ही
प्राप्त होती है।
Ø अत्यधिक
मूर्तियों का निर्माण हुआ। मूर्तियों में विष्णु, शिव, पार्वती, ब्रह्मा, के
अतिरिक्त बुद्द तथा जैन तीर्थकरों की मूर्तियों का निर्माण भी इस काल में हुआ।
Ø मंदिर निर्माण
कला का जन्म भी गुप्त काल में हुआ। देवगढ़ का दशावतार मंदिर भारतीय मंदिर निर्माण
का शायद पहला उदाहरण है।
Ø तिगवा का
विष्णु मंदिर
Ø भूमरा का शिव
मंदिर
Ø नचना कुमार का
पार्वती मंदिर
Ø भितरगाँव के
मंदिर
Ø गुप्त प्राचीन
भारत के स्वर्ण युग पर कई नगरो का पतन भी हुआ
Ø
गुप्तों ने सबसे अधिक स्वर्ण मुद्राएं जारी की >> गुप्तों के पास सोना भारी मात्रा में था
Ø
अमीर और रईस लोग अपनी आय का कुछ भाग कला और साहित्य की
साधना में लगे लोगों के भरण पोषण में लगाने में समर्थ थे
Ø
समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय : कला और
साहित्य दोनों के संपोषक हुए >> समद्रगुप्त को अपने सिक्के पर वीणा
बजाते हुए दिखाया गया
Ø
चन्द्रगुप्त का दरबार : नवरत्न अर्थात
नौ बड़े बड़े विदयवान से अलंकृत था
Ø
मौर्य काल और मौर्योत्तर काल में कला को बौद्द धर्म
को बढ़ावा मिला >> फलस्वरूप पत्थर के बड़े बड़े स्तम्भ खड़े किए गए >> चट्टानों को काट काट कर सुंदर गुफाएँ बनाई गयी और ऊंचे ऊंचे स्तूप खड़े
किए गए
Ø
स्तूप = बुद्द संबंधी पुरावशेषों पर निर्मित गोलाकार आधारों पर टिकी
गुंबदनुमा मिट्टी, ईंट, या प्रस्तर की संरचना ।
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स्तूप |
Ø बुद्द की
अनगिनत प्रतिमाएँ बनाई गयी
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बुद्ध की कांस्य प्रतिमा |
Ø 25 मीटर बुद्द
की कांस्य मूर्ति = जो फा-हियान ने देखी थी जिसका अभी कोई पता नहीं
Ø सारनाथ और
मथुरा में बुद्द की प्रतिमाएँ : गुप्तकाल की बौद्द कला का सुंदर नमूना
Ø मथुरा की वर्धमान
महावीर की मूर्ति =
Ø काशी की
गोवर्धनधारी कृष्ण की मूर्ति
Ø झाँसी की
शेषशायी विष्णु की मूर्ति
Ø अजंता की
चित्रावली(महाराष्ट्र में): 16 व 17 और 19
गुफा के चित्र एवं बाघ इसी समय चित्रित किए गए। 1-7वी सदी तक के चित्र पर अधिकतर
गुप्त काल के ही हैं >> गौतम बुद्द के और उनके पिछले जन्म
की विभिन्न घटनाएँ चित्रित हैं ।
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अजंता की चित्रकारी |
Ø
गुप्त राजा हिन्दू धर्म के संपोषक >> इसलिए विष्णु –शिव और अन्य हिन्दू देवताओं की प्रतिमाएँ भी मिलती हैं >> सम्पूर्ण देवमंडल >> बीच में मुख्य देवता और
चारों उसके परिचर और गौण देवता एक ही पट्टे पर विराजमान थे >> मुख्य देवता का आकार
Ø वास्तुकला : गुप्त काल पिछड़ा था >> ईंट के बने कुछ मंदिर उत्तर प्रदेश में मिले हैं जैसे
1. कानपुर के भीतरगाँव
2. गाजीपुर की भीतरी
3. झाँसी के देवगढ़ के ईंट के मंदिर
Ø गुप्त राजा हिन्दू धर्म के संपोषक >> इसलिए विष्णु –शिव और अन्य हिन्दू देवताओं की प्रतिमाएँ भी मिलती हैं >> सम्पूर्ण देवमंडल >> बीच में मुख्य देवता और चारों उसके परिचर और गौण देवता एक ही पट्टे पर विराजमान थे >> मुख्य देवता का आकार
Ø सारनाथ का धम्मेख स्तूप
Ø
राजगृह स्थित जरासंध की बैठक
Ø
नालंदा का बुद्द महाविहार : पाँचवी सदी में बना
और इसकी सबसे पहले की ईंट की संरचना गुप्त काल में बनी है
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नालंदा महाविहार |
साहित्य
Ø काशी, मथुरा, नासिक, पद्मावती, उज्जयनी, अवरपुर, वल्लभी , पाटलीपुत्र, तथा कांची गुप्त काल के प्रमुख शैक्षिक केंद्र थे।
Ø हरिषेण ,
वीरसेन, कालीदास, तथा विशाखदत्त इस युग
के प्रमुख विददान
Ø बौद्द
विददानों में असंग, वसुबंध, दिड्नाथ तथा
धर्मपाल
Ø जैन विददानों
में उपेशवती, सिद्दसेन, तथा
भद्रबाहु –II इसी समय में हुए थे
Ø गुप्त काल
लौकिक साहित्य की सर्जना के लिए स्मरणीय है
Ø भास के तेरह : नाटक
Ø मृच्छकटिक या
माटी की खिलौना गाड़ी: शूद्रक का लिखा >> इसमे निर्धन ब्राह्मण का वेश्या के साथ प्रेम वर्णित है >> प्राचीन नाटकों में सर्वोत्तम
Ø अभिज्ञानशाकुंतलम:
कालीदास ने लिखा >> विश्व की एक सौ उत्कृष्टम रचनाओं
में से एक >> राजा दुष्यंत और शंकुंतला के प्रेम का
वर्णन हैं जिंका पुत्र भरत नामी राजा हुआ
Ø
भारत की यूरोपीय भाषा में अनुवादित प्रथम रचना :
अभिज्ञानशाकुंतलम
Ø
भारत की यूरोपीय भाषा में अनुवादित दूसरी रचना : भगवद्गीता
Ø गुप्त काल के नाटकों की विशेषता :
1. सभी नाटक सुखांत है
2. उच्च वर्ग के लोग अलग अलग भाषाएँ बोलते हैं >> स्त्री और शूद्र प्राकृत बोलते है जबकि भद्रजन संस्कृत
Ø
धार्मिक साहित्य की रचना में भी भारी प्रगति
Ø
रामायण और महाभारत ईसा की 4वी सदी तक पूरे हो चुके थे
Ø रामायण : राम की कथा
Ø महाभारत: कौरवो और
पांडवो की कहानी
Ø भगवतगीता: इसमे बताया
है कि कर्तव्य का पालन किसी प्रतिफल की कामना के करना चाहिए
Ø पुराण: दोनों महाकाव्यों के ढर्रे पर ही है >> जो अधिक पहले के है >> अंतिम संकलन और
सम्पादन गुप्तकाल में हुआ >> मिथकों, आख्यानों और प्रवचनों से भरे हुए >> शिक्षा
और बुद्दिविवेक का उपयोग बताया हुआ है
Ø नारद : इसी
काल में लिखा गया
Ø स्मृतियाँ: सामाजिक और
धार्मिक नियम कानून पद्य में बांधकर संकलित किया गए हैं
Ø संस्कृत
व्याकरण: का भी विकास हुआ
Ø अमरकोश: संकलन चन्द्र
गुप्त द्वितीय कि सभा के एक नवरत्न अमरसिंह ने किया है >> प्राचीन रीति से पढ़ने वाले छात्रो को यह शब्द कोश रटा दिया जाता हैं
Ø जटिल अलंकारिक
शैली: का विकास हुआ जो पुराने सरल संस्कृत साहित्य कि शैली से
भिन्न थी
Ø
इस काल से आगे पद्ध से अधिक गध्य पर ज़ोर >> टीका ग्रंथ
Ø गुप्त राजाओं
कि शासकीय भाषा: संस्कृत
Ø पंचतंत्र :
विष्णु शर्मा द्वारा
Ø हितोपदेश :
नारायण पंडित द्वारा
Ø किरातार्जुनीय
: भारवि ने लिखा
Ø नीतिसार :
कामन्दक ने
Ø चन्द्र
व्याकरण : चंद्रगोमिन ने
विज्ञान और
प्रोद्धिगिकी:
Ø
गणित: इस काल का महत्वपूर्ण का ग्रंथ >> आर्यभटीय >> रचयिता = आर्यभट्ट
>> पाटलीपुत्र का रहने वाला >> ये गणित की विविध गणना में पारंगत थे
Ø
इस युग में गणित,
पदार्थ, धातु विज्ञान, रसायन विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान, तथा चिकत्सा विज्ञान की बहुत
उन्नति हुई।
Ø
आर्यभट्ट इस काल के प्रख्यात गणितज्ञ और खगोल शास्त्री थे ।
आर्यभट्टीयम ग्रंथ की रचना की। जिसमे अंक गणित ,
बीजगणित, और रेखागणित की विवेचना की गयी है,
Ø
सूर्यसिद्दांत में आर्यभट्ट ने यह सिद्द किया है की पृथ्वी
सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।
Ø
वृहतसंहिता एवं पंचसिद्धांतिका ग्रन्थों : वराहमिहिर ने
इनकी रचना की
Ø
ब्रह्म सिद्धान्त : ब्रह्मगुप्त का खगोल शास्त्र का एक
प्रसिद्द ग्रंथ है।
Ø
दशमलव और
शून्य का अन्वेषण इसी काल में हुआ
Ø
खगोल शास्त्र : रोमक सिद्दांत नामक पुस्तक >> इस पर रोमन चिंतनों का प्रभाव था
Ø
लौह और कांस्य कृतियाँ : तकनीकी जानकारी उन्न्त
अवस्था में >> अच्छा उदाहरण
दिल्ली के महरौली में
![]() |
महरौली का लौह स्तम्भ |
Ø
पर शिल्पकार इस ज्ञान को और आगे ना बढ़ा पाये
गुप्तोत्तर काल /पूर्व
गुप्तकाल
गुप्तों के पतन के बाद
सामंतवाद की नई प्रवत्ति देखने के लिए मिली, जिसने विकेंद्रीयकरण एवं
क्षेत्रीयकरण की भावना को बढ़ावा दिया। इस दौरान कुछ राजवंशों ने शासन तो किया पर
सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधा न जा सका। राजनीतिक व्यवस्था की यह प्रवत्ति
तुर्क शासन की स्थापना तक जारी रही।
गुप्तों के पतन के बाद
अनेक राजवंशो का उदय हुआ, जैसे वल्लभी के मैत्रक, पंजाब के हूण, मालवा और मगध के उत्तरगुप्त, कन्नौज के मौखरि, तथा थानेश्वर के पुष्यभूति वंश
👍👍👍👍👍
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