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Saturday, June 20, 2020

18TH CENTURY INDIA (PART-4)- मुहम्मद शाह (1719 -1748)

नसीरुद्दीन मुहम्मद शाह (जन्म का नाम रोशन अख़्तर) 

मुहम्मद शाह के जन्म का नाम रोशन अख्तर था। इसने तीस साल शासन किया । इसके वजीर का नाम निजाम उल मुल्क था जो 1722 में वजीर बना। इसका राजकाज पर कोई ध्यान नहीं था।   इन्हें मोहम्मद शाह रंगीला के नाम से भी जाना जाता है।  यह बड़े ही रंगीन तबके के थे इन्हें नाच गाने का बड़ा शौक था।  

इन का राज्याभिषेक 1719 में सैयद बंधुओं की सहायता से हुआ। परंतु मोहम्मद शाह को सैयद बंधु से काफी खतरा पैदा हो गया था क्योंकि उन्होंने पहले भी कई सारे मुगल सम्राटों का कत्ल करवाया था। जिसके कारण उन्होंने सर्वप्रथम निजाम उल मुल्क (जो कि आगे चलके हैदराबाद के निजाम बने) की सहायता से सैयद बंधुओं को खत्म करवा दिया। 

पर कपटी और नालायक चापलूसों के प्रभाव के कारण मुहम्मद शाह ने वजीर का साथ नहीं दिया । मुहम्मद शाह कृपापात्र दरबारियों के घूस में हिस्सा भी लेने लगा था। वजीर राजा के ढुलमुल रवैया और शक्की मिजाज से परेशान था, इस कारण से अक्तूबर 1724 में वजीर ने अपना ओहदा छोड़ दिया और हैदराबाद रियासत की नींव डाली। वजीर के जाने से मुगल साम्राज्य का विखराव शुरू हुआ। 

उस वक्त कई विदेशी शक्तियों की नजर मुगल सल्तनत पर पड़ी थी क्योंकि उस वक्त मुगल काफी कमजोर थे। पिछले कई वर्षों में कई सारे सम्राटों के गद्दी पर बैठने के कारण मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ गया था जिसके कारण कई विदेशी शक्तियां भारत पर अपने पांव पसार रही थी। दिल्ली के बादशाह के प्रति नाममात्र की निष्ठा जाहीर कर बंगाल, हैदराबाद, अबध, पंजाब जैसे खानदानी नबाबों का देश भर में उदय हुआ। हर जगह बगावत होने लगी । मराठों ने उत्तर की ओर मालवा , गुजरात और बुंदेलखंड को रौंद दिया। 

1739 में नादिरशाह ने ईरान से भारत की ओर रुख किया और हिंदू कुश के पहाड़ को पार करते हुए पेशावर के सूबेदार को पराजित कर 1739 में भारत में दाखिल हो गया।  उसने करनाल पहुंचकर मुगल सम्राट मोहम्मद शाह की सेनाओं को (जो कि करीब 100000 से भी अधिक की थी)  पराजित किया और मुगल सम्राट को लेकर दिल्ली की ओर चल दिया।  

उसने  दिल्ली के जाकर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया।  दिल्ली में उसके नाम को खुदबा पढ़ा गया परंतु बाद में उस पर दिल्ली में घुसते हुये उसके सीने पर प्रहार हुआ। नादिरशाह इस बात से नाखुश हो गया और उसने सभी सैनिकों को दिल्ली में लूटपाट मचाने का आदेश दे दिया। दिल्ली में भयानक लूट मचाई गई।  40000 से भी ज्यादा लोगों का कत्ल करवाया गया। 

अरबों का खजाना लाल किले से लूटकर ले जाया गया जिसमें कोहिनूर और तख़्त ताउज (मयूर सिंहासन) भी शामिल था।  ये हार उसके लिए बहुत बड़ी थी जिसे मुगल सम्राट की ताकत बिल्कुल शक्तिहीन हो गई और भारत में विदेशी शक्तियों का बोलबाला हो गया। यह उसके कम नेतृत्व क्षमता और अदूरदर्शिता को दर्शाता था । 

इसके कारण ही मुगल साम्राज्य का पतन होना शुरू हो गया । और 1748 में  उसका निधन हो गया।  उसका निधन बहुत बुरी तरीके से हुआ।  निजाम उल मुल्क की युद्ध मे मौत हो जाने के कारण वह अकेले कमरे में बैठकर चिल्लाया करता थे और उसका दुख उसे सहन नहीं हुआ और अंत में 1748 में उसकी मौत हो गई उसके बाद उसके पुत्र अहमद शाह बहादुर मुगल सम्राट बने। 


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