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Thursday, June 18, 2020

18TH CENTURY INDIA (PART-3)- फ़र्रुख़ सियर (1713-1719)

फर्रूखसियर 
फ़र्रुख़ सियर (1713-1719)


फ़र्रुख़ सियर (जन्म: 20 अगस्त 1685 - मृत्यु: 19 अप्रैल 1719) एक मुग़ल बादशाह था जिसका पूरा नाम अब्बुल मुज़फ़्फ़रुद्दीन मुहम्मद शाह फ़र्रुख़ सियर था। आलिम अकबर सानी वाला, शान पादशाही बह्र-उर्-बार, तथा शाहिदे-मज़्लूम उसके शाही ख़िताबों के नाम हुआ करते थे। 

1715 ई. में एक शिष्टमंडल जाॅन सुरमन की नेतृत्व में भारत आया। यह शिष्टमंडल उत्तरवर्ती मुग़ल शासक फ़र्रूख़ सियर की दरबार में 1717 ई. में पहुँचा। उस समय फ़र्रूख़ सियर जानलेवा घाव से पीड़ित था। इस शिष्टमंडल में हैमिल्टन नामक डाॅक्टर थे जिन्होनें फर्रखशियर का इलाज किया था।इससे फ़र्रूख़ सियर खुश हुआ तथा अंग्रेजों को भारत में कहीं भी व्यापार करने की अनुमति तथा अंग्रेज़ों द्वारा बनाऐ गए सिक्के को भारत में सभी जगह मान्यता प्रदान कर दिया गया। फ़र्रूख़ सियर द्वारा जारी किये गए इस घोषणा को ईस्ट इंडिया कंपनी का मैग्ना कार्टा कहा जाता है।

फर्रुखशियर के पिता अजीम ओशान की 1712 में जहांदर शाह द्वारा हत्या कर दी गई थी और जहांदर शाह ने अपने पिता की हत्या कर मुगल सम्राट बना था   अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए  10 जनवरी 1713 में समूगढ के युद्ध में फर्रूखसियर ने जहांदरशाह की सेनाओं को पराजित किया। समूहगढ के निकट जहांदार शाह की हत्या कर दी गई। फिर  वो  1713 में दिल्ली पहुंचा और अपने  आप को मुगल साम्राट घोषित किया । 

इस जीत का श्रेय सैयद बंधु (अब्दुल्ला खान और हुसैन अली खान) को था।  अपने पूरे 6 वर्ष के कार्यकाल में फर्रूखसियर सैयद बंधुओं के चंगुल से आजाद ना हो सका। उसने  सैयद हुसैन अली खान को अपना वजीर घोषित किया जबकि वह उसको वजीर घोषित नहीं करना चाहता था परंतु शायद बंधुओं के दबाव पर उसने उसको अपना वजीर घोषित किया। और अब्दुल्ला खान को मीर बक्शी घोषित किया गया । 

फर्रुखशियर में शासन करने की क्षमता नहीं थी। वो कायर, क्रूर , बेईमान और अमानवीय था । उसने अजित सिंह को रोकने का पूर्ण प्रयत्न किया परंतु अजीत सिंह को रोकने में सफल नहीं रहा क्योंकि लगातार दक्षिण भारत में व्यस्त रहने के कारण उत्तर भारत में कई राजपूत एवं जाट शक्तियां वापस मजबूत हो गयी थीं पर बाद में अजीत सिंह की बेटी से विवाह कर अजीत सिंह को रोक लिया गया । 


परंतु बंदा सिंह बहादुर को लेकर उसको बड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी । बंदा सिंह बहादुर ने 1708 से मुगलों की  नाक में दम कर रखा था। 1716 में उन्होंने बंदा सिंह बहादुर को पकड़ लिया और 40 सिखों की हत्या कर दी गयी । बाद में उन्होंने बुरी तरह से से बंदा सिंह बहादुर की हत्या कर दी गयी ।  इससे पूरे सिख लोगों में मुगलों के विरुद्ध एक आक्रोश की भावना पैदा हो गयी। 


मराठों के विरुद्ध भी फर्रूखसियर की नीति कुछ अलग थी। सैयद हुसैन अली खान फर्रूखसियर को अपना गुलाम बनाना चाहता था। इसलिए फर्रूखसियर ने उसके आदेशों को ना मानना शुरू कर दिया और उसने ढक्कन में मराठों से सहायता मांगी। उसने मराठों को दक्कन में सरदेशमुखी और चौथ वसूलने के लिए इजाजत दे दी जिससे फर्रूखसियर काफी नाराज हो गया। 

तब फर्रूखसियर ने सैयद बंधुओं को पराजित करने का फैसला किया परंतु ऐसा करने में सफल नहीं हो सका क्योंकि सैयद बंधु बहुत ही ताकतवर मंत्री थे और उनका प्रभाव संपूर्ण मुगल दरबार में था।हुसैन अली बहुत ही ताकतवर मंत्री था।  अंततः उसने मराठों से संबंध स्थापित किए और 1719 में फर्रुखसियार का वध करवा दिया गया। 

उसके बाद उसने दो मुगल सम्राटों के छोटे-छोटे कार्यकाल के लिए गद्दी पर बैठाया पर वो क्षय रोग से मर गए । फिर 18 वर्षीय मोहम्मद शाह को 1719 में मुगल सम्राट बनाया गया।  उसने निजाम उल मुल्क की (जो कि बाद में चलकर हैदराबाद के निजाम बने) सहायता लेकर सैयद बंधुओं को खत्म किया और 1723 में एक स्वतंत्र मुगल सम्राट के रूप में उभरा । पर सम्राट बनने के बाद मुगल साम्राज्य कुछ खास विस्तार नहीं किया बल्कि मुगल साम्राज धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो गया।

सैयद बंधु

1713-1719 तक सैयद बंधु का राजकीय शासन था । इन्होने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। राजपूत, मराठों और जाटों के साथ  मेल मिलाप किया । इन्होने इन लोगों का इस्तेमाल फर्रूखसियर  और विरोधी सामंतों के खिलाफ किया । फर्रूखसियर के गद्दी पर बैठते ही जज़िया कर और तीर्थ यात्री कर खत्म कर दिया गया। 

मारवाड़ के  अजित सिंह, आमेर के जय सिंह और अनेक राजपूत राजकुमारों को प्रभावशाली ओहदे दिये। जाट चूरामन के साथ दोस्ती की। बाद के वर्षों मे राजा साहू को (शिवाजी का) स्वराज्य तथा दक्कन के 6 प्रान्तों के चौथ और सरदेशीमुखी वसूल करने का अधिकार दिया । इसके बदले मे साहू के 15000 घुड़सवारों द्वारा  दक्कन मे समर्थन दिया गया । 

बगावत को दबाने के लिए किए गए प्रयासों पर विफलता मिली क्योंकि उसे निरंतर राजनीतिक झगड़ों और दरबार के षडयंत्र का सामना करना पड़ा। 

वित्तीय व्यवस्था खराब हो चुकी थी । जमीदारों ने राजस्व देने से मना कर दिया था । अफसर भी राजकीय आमदनी का गबन करते थे। इजारा व्यवस्था के फलस्वरूप केंद्रीय आय कम हो चुकी थी , इसलिए अफसर और सैनिकों की तनख्वाह नियमित रूप से नहीं दी जा सकी थी जिसके कारण इनमें अनुशासनहीनता और विद्रोह की भावना आ चुकी थी । 

सैयद भाइयों की बड़ती ताकत से लोग ईर्ष्या करने लाहे थे और सामंत भयभीत थे क्योंकि सैयद बंधुओं ने फर्रूखसियर को मार दिया था। फर्रूखसियर की हत्या से दोनों भाइयों के खिलाफ जनता में घृणा की एक लहर हो गयी । इस कारण से इन दोनों को विश्वासघाती और नमकहराम के रूप मे जाने जाना लगा । इसके अलावा औरंगजेब के जमाने के सामंतों ने मराठों और राजपूतों के प्रति नरमी को नापसंद किया और हिंदुओं के प्रति नरमी भी पसंद नहीं की । तब सामंतों ने घोषणा की कि दोनों भाई मुगल विरोधी और इस्लाम विरोधी नीति अपने रहे हैं ।   
1720 में  छोटे भाई हुसैन अली  खान को धोखे से मारने की कोशिश भी की गयी । अब्दुल्ला खान आगरा के पास हार गया। 
मुहम्मद शाह को विरोधी सामंतों का समर्थन था । निजाम उल मुल्क और सैयद भाइयों के पिता के रिश्ते के भाई मुहम्मद अमीन खान का एक शक्तिशाली गुट के षडयंत्र से सैयद भाइयों को हटा दिया गया 




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