हड़प्पा संस्कृति का उदय
1856 में कराची एवं लाहौर के मध्य रेल लाइन बिछाने के दौरान नजदीक खंडहर
से ईट निकाली जाने लगी
इन्हीं खंडहरों में मुल्तान जिले का हड़प्पा नामक खंडहर था परंतु उस समय तक इस तत्व का बोध ना हो सका कि इस खंडहरों के नीचे एक विशाल सभ्यता की बहुमूल्य सामग्री सुरक्षित है
1972 में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता सर अलेक्जेंडर कनिंघम इस स्थान पर आए
तथा कुछ पुरातात्विक वस्तुओं एकत्र की।
किंतु वह इन वस्तुओं का काल निर्धारण नहीं कर पाए
तदनंतर 1920
में माधव स्वरूप वत्स एवं
दयाराम साहनी के पर्यवेक्षण में महत्वपूर्ण कार्य प्रारंभ हुआ। रावी नदी के तट पर उत्खनन शुरू हुआ तो हड़प्पा नामक स्थल के अवशेष
मिले। 1921 में प्राप्त अवशेषों से इस सभ्यता का संबंध बेबी लोनिया के समकालीन
लगता था।
1922 में राखल दास बनर्जी के निर्देशन में विस्तृत उत्खनन कार्य प्रारंभ
हुआ। उन्होंने सिंधु नदी के पश्चिम तट पर लरकारा जिले में सभ्यता के
दूसरे महत्वपूर्ण नगर मोहनजोदड़ो को खोजा।
गोपाल मजूमदार ने कुछ और स्थलों को ढूंढ निकाला।
जॉन मार्शल हड़प्पा के विषय में 1924 में एक रिपोर्ट दी और
बताया कि यह सभ्यता उतनी ही प्राचीन थी जितनी मिश्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता है।
1925 में अर्नेस्ट मेंके ने मोहनजोदड़ो से 80 मील दूर दक्षिण पूर्व में स्थित चंहुदड़ों नामक स्थान का उत्खनन
कराया
इस सभ्यता को सिंधु (सैंधव) सभ्यता, सिंधु घाटी सभ्यता और
हड़प्पा सभ्यता कहा जाता हैं। पुरातत्व विज्ञान के अनुसार इसे हड़प्पा सभ्यता कहा
जाता है क्योंकि इस सभ्यता का ज्ञान सर्वप्रथम हड़प्पा में हुआ और प्राचीन
संस्कृति का नामांकन उस स्थान के आधुनिक नाम से किया जाता है या उसके अस्तित्व का
सबसे पहले बोध हुआ हो
हड़प्पा सस्कृति के उदय की निम्न अवधारणाएं हैं -
१. पाश्चात्य से उदगम
इतिहासकारों जैसे एम व्हीलर, गार्डन चाइल्ड आदि ने हड़प्पा संस्कृति का उदभव मेसोपोटामिया से बताया है, पर यह मत स्वीकार्य नहीं हैं क्योंकि -
1. हड़प्पाई नगर व्यवस्थित तरीके से बसे हुए हैं जबकि मेसोपोटमिया नगर
बेतरतीब से बसे हुए हैं। सैन्धव
नगर का नियोजन एवं सार्वजनिक स्वच्छता की व्यवस्था मेसोपोटामिया से ही नहीं बल्कि समस्त पश्चिम सभ्यताओं से विशिष्ट पाई गई है
2. हड़प्पा सभ्यता में शासक वर्ग की उपस्थिति का स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं शायद
वणिक वर्ग के हाथ में था जबकि मेसोपोटामिया में पुरोहित वर्ग का शासन था
3. हड़प्पा में मकान आयताकार और पक्की ईटों से बने हुए हैं जबकि मेसोपोटामिया में इसका अभाव हैं
4. हड़प्पा संस्कृति की लिपि सबसे पृथक और विशिष्ट हैं , दोनों की लिपि में भिन्नता है।
5. मेसोपोटामिया में उपलब्ध मंदिरों या मिश्र के समान भव्य कब्रों
का अस्तित्व हड़प्पा स्थलों में नहीं देखा
गया है।
6. दोनों संस्कृति की
उपलब्ध भौतिक सामग्री में यथा मृदभांड, प्रस्तर मुर्तिया (idol
) मृणभूतियों (Terrocota
idol) ,मुहरों (seal) तथा आयुधों में असमानताएं है
व्हीलर की मान्यता का आधार हड़प्पा स्थल से प्राप्त सुमेरियन अवशेष
है यथार्थ में सेंधव सभ्यता के अवशेष मेसोपोटामिया स्थलों में और मेसोपोटामिया
सामग्री की हड़प्पा स्थलों से प्राप्ति परस्पर आदान-प्रदान एवं वाणिज्य व्यापार को
इंगित करती है।
इसलिए प्राप्त अवशेषों के आधार पर मेसोपोटामिया को सैन्धव
सभ्यता का उद्गम स्थल सिद्ध करने के लिए निश्चित रूप में स्वीकार
नहीं किया जाता है।
2. ग्रामीण एवं पशु पालक संस्कृति से उदभव
इस मत के समर्थक फेयर सर्विस,
स्टुअर्ट पिगट, सांकलिया, आलचिन आदि हैं
इनके अनुसार हड़प्पा संस्कृति का उदभव बलूचिस्तान की ग्रामीण
संस्कृति से हुआ हैं।
इन पर्वतीय क्षेत्र में विकास के पर्याप्त अवसर नहीं थे और पर्वतीय
भागों से भूमि तथा सिंचाई एवं पीने के पानी की तलाश में लोग पंजाब एवं सिंध में आए
थे।
इस मत के समर्थन में निम्न कारण थे -
1. दोनों सभ्यताओं में पक्की मिट्टी की मूर्तियों के अतिरिक्त ताम्र
एवं कांस्य वस्तुओं निर्माण भी किया जाता था ।
2. दोनों की मृदभांड कला में ही समानता दृष्टिगोचर होती है , दोनों मे लाल रंग के मृदभांड (Red Pottery) और धूसर रंग के
मृदभांड (Grey Pottery) मिले हैं
3. ऐसी मान्यता है कि दोनों ही जगह मातृ देवी एवं कदाचित लिंग पूजा भी
की जाती थी
4. संभवता बलूचिस्तान की ग्रामीण संस्कृति का पूर्व की सेंधव सभ्यता के केंद्रों के साथ निरंतर संपर्क बना रहा, इसके अतिरिक्त सैंधव सभ्यता के उत्पादन पश्चिम में लोकप्रिय थे
इस प्रकार इन विददानों का कहना था कि सभ्यता का उदभव और विस्तार
बलूची क्षेत्र के लोगों के सैन्धव
प्रदेश में आखेट पर निर्भर करने वाले किन्हीं वन्य और कृषक
सभ्यताओं के परस्पर प्रभाव के परिणाम स्वरुप हुआ है
किंतु इस मत को भी स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि निम्न प्रश्नो के
उत्तर नहीं मिल पाये
1. ग्राम संस्कृतियों में पक्की ईंटों का उपयोग नहीं किया जाता था ना
ही पके मकानों का निर्माण दिखा गया
2. उन लोगों को प्रणाल (ड्रेनेज) व्यवस्था का ज्ञान नहीं था जो सेंधव
सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता थी
अतः मृत्पात्रों पर अंकित चित्र की समानता के आधार पर सेंधव सभ्यता का उद्गम ग्राम में सभ्यता में ढूंढा प्रासंगिक नहीं होगा।
3. स्थानीय उदगम
कुछ विद्वान सेंधव सभ्यता का उद्गम एवं क्रमिक विकास भारत की धरती
पर होना ही मानते हैं। इसका कारण ऐसे मृदभांड
का मिलना हैं जो प्राक हड़प्पाकालीन मृदभांड से समानता लिए हुए हैं
इस प्रकार के मृदभांड अमलानंद घोष को 1953
में सोथी (बीकानेर क्षेत्र) नामक स्थान, बाद में लुप्त प्राय सरस्वती सरस्वती नदियों की घाटियों में, उत्तरी राजस्थान के गंगानगर जिले में अनेक स्थानों पर मिले। तदंतर कालीबंगा (गंगानगर जिला) के उत्खनन में इसी प्रकार के मृदभांड मिले हैं
इस संस्कृति को कुछ विद्वानों ने "सोथी संस्कृति" और कुछ
ने "कालीबंगा" प्रथम नाम दिया है
कालीबंगा के साक्ष्यों
की समीक्षा करते हुए घोष ने बताया कि सैंधव लोगों से पूर्व
कालीबंगा में प्राक सेंधव का अस्तित्व था जो सेंधव सभ्यता से बिल्कुल भिन्न थी
सोथी मृदभांड परंपरा के तत्व सैंधव मृदभांड परंपरा में भी उपलब्ध
होते हैं - जैसे मत्स्य शल्क, पीपल के पत्ते, बाह्य भाग में रस्सी अथवा डोरी के निशान वाले पात्र तथा भीतरी भाग
उत्कीरित अलंकरण से युक्त तसले इत्यादि,
"सोथी" एवं विकसित सैंधव स्थलों (मोहेनजोदोड़ों , हड़प्पा, एवं रोपड़ आदि)
के मृत्पात्रों पर समान रूप से दिखाई देते हैं।
सोथी मृदभांड परंपरा के तत्व सैंधव मृदभांड परंपरा में भी उपलब्ध
होते हैं - मत्स्य शल्क, पीपल के पत्ते, बाह्य भाग में रस्सी अथवा डोरी के निशान वाले पात्र तथा भीतरी भाग
उत्कीरित अलंकरण से युक्त तसले इत्यादि,
"सोथी" एवं विकसित सैंधव स्थलों (मोहेनजोदोड़ों , हड़प्पा, एवं रोपड़ आदि)
के मृत्पात्रों पर समान रूप से दिखाई देते हैं।
झाब कोटा तथा मध्य बलूची मतपत्रों से दुनिया सोती मृत पात्र परंपरा
की हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के वस्त्रों से प्राप्ति सरस्वती घाटी के सेंधव स्थलों
पर इसकी व्यापक रूप से उपलब्ध है इसमें पात्र परंपरा के कुछ तत्वों का विकसित
सेंधव पात्र परंपरा में जीवित रहना जो ना केवल सरस्वती घाटी में दिखाई देता है वरन
हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में भी देखा जा सकता है
अतः घोष के अनुसार , सैंधव सभ्यता का विकास बाह्य आगंतुक उपनिवेशवादियों ने नहीं किया
वरन् सिंधु प्रदेश के उन्हीं स्थानीय लोगों में से कुछ शक्ति संपन्न लोगों ने किया
जो पहले से यहां निवास कर रहे थे।
नगरीय जीवन का विचार कदाचित उन्हें समकालीन सुमेरिया से प्राप्त
हुआ हो लेकिन एक बार इसकी जानकारी हो जाने पर उन्होंने सुमेरिया नगर से अच्छे
नगरों के निर्माण का प्रयास किया
पश्चिमी एशिया के साथ व्यापारिक संबंधों का प्रयास किया जिससे
उन्हें विशिष्टीकरण की आवश्यकता का अनुभव हुआ
हड़प्पा सभ्यता के अवशेष अभी हाल में ही हरियाणा में सरस्वती
(आधुनिक घग्गर) के किनारे उत्खनन से प्राप्त हुए हैं
पुराविदों ने प्राप्त अवशेषों को 5000 वर्ष पूर्व का स्वीकार
किया है ।
विद्वानों की मान्यता है कि सैंधव सभ्यता का आविर्भाव पश्चिम एशिया
में ना होकर भारत में ही हुआ था
कालीबंगा, मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि इस स्थल के प्रमुख केंद्र थे
अब यह पूरी तरह प्रमाणित हो गया है कि इस सभ्यता का विकास सिंधु
घाटी और उस के समीप ही हुआ और इसे विकसित होने में काफी समय लगा एवं धीरे-धीरे
इसका प्रसार बहुत बड़े भाग में हो गया।
इस सभ्यता के प्रारम्भिक काल को प्रारम्भिक हड़प्पा एवं
परवर्ती विकसित काल को विकसित हड़प्पा काल के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं इस तरह
अमलानंद घोष का विचार मान्य हो गया
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