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Difference between Buddhism and Jainism |
जैन धर्म और बौद्द धर्म की
समाज को देन
जैन धर्म की
देन
|
बौद्द धर्म की
देन
|
जैन धर्म ने लोगों को अहिंसा एवं सदाचार
का प्रचार किया तथा संयमित जोवन जीवन व्यतीत करने का उपदेश दिया
|
बौद्द धर्म ने समाज को एक लोकप्रिय धर्म प्रदान
किया,
जिसे निरर्थक नियमों और विधि विधानों तथा पुरोहितों की आवश्यकता थी
|
अनेकांतवाद का सिद्दांत भेदवाद को मिटाने
का एम महत्वपूर्ण प्रयास था ऐसा करके जैन ढंर्म ने समन्यवय के भारतीय दृष्टिकोण
को एक सुदृढ आधार प्रदान किया
|
बौद्ध धर्म के उपदेश तथा सिद्दांत पालि भाषा में
लिखे गए ,
जिससे पाली भाषा और साहित्य का विकास हुआ
|
जैन विददानों ने विभन्न कालों मे लोक
भाषाओं के माध्यम से अपनी कृतियों की रचना करके इनके विकास में महत्वपूर्ण
योगदान दिया
|
बौद्द धर्म की व्यवस्था जनतंत्रतामक प्रणाली पर
आधारित थी। इसके तत्वों को हिन्दी मठों तथा कालांतर में राजशासन में ग्रहण किया
गया
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प्राकृत भाषा को भारत में प्रचलित करने
में जैन साहित्यकारों के कार्य सराहनिय हैं
|
बौद्द धर्म ने आम जन के जीवन का नैतिक स्तर ऊपर
उठाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ,
जन जीवन में सदाचार एवं सचरित्र की भावनाओं का विकास हुआ ।
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प्राचीन भारतीय कला एवं स्थापत्य को
विकसित करने में जैनियों का योगदान महत्वपूर्ण हैं । हस्तलिखित जैन ग्रन्थों पर
खींचे हुए चित्र पूर्व मध्ययुगीन चित्रकला के सुंदर नमूने हैं
|
बौद्द धर्म के प्रभाव के कारण भारतीय दर्शन में
तर्क शास्त्र की प्रगति हुई । बौद्द धर्म के शून्यवाद तथा विज्ञान वाद का शंकराचार्य
के दर्शन पर गहरा प्रभाव पड़ा ,
इसकी कारण से शंकराचार्य को प्रछन्न बौद्द भी कहा जाता हैं
|
उड़ीसा, गुजरात, राजस्थान,आदि से अनेक जैन धर्म मंदिर, मूर्तियों, गुहा स्थापत्य
आदि के उत्कृष्ट नमूने मिले हैं
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बौद्द धर्म ने देश को अहिंसा, शांति, बंधुत्व, सह अस्तित्व आदि
का आदर्श बताया
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बौद्द धर्म ने भारतीय कला तथा स्थापत्य के विकास में
महत्वपूर्ण योगदान दिया । इस धर्म से प्रेरणा पाकर शासकों एवं श्रद्धालु जनता द्वारा
अनेक स्तूप,
विहार,
चैत्य गृह आदि निर्मित किए गए
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जैन धर्म और बौद्द साहित्यों
की तुलना
जैन साहित्य
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बौद्ध साहित्य
|
जैन धर्म के प्राचीनतम ग्रन्थों को पूव्व कहा
जाता हैं। इनकी संख्या 14 हैं। जैन साहित्यों को आगम (सिद्दांत) कहा जाता
हैं । ये अर्द्ध मगधी या मागधी या प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं इसके अंतर्गत 12
अंग,
10 प्रकीर्ण,
6 छेद सूत्र,
4 मूल सूत्र एवं अनुयोग सूत्र आते हैं
|
बौद्ध साहित्य को त्रिपटक कहा जाता हैं। यह पालि भाषा
में रचित हैं। ये त्रिपटक सुत्तपटक,
विनयपटक,
एवं अभिधम्मपिटक के नाम से जाने जाते हैं
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जैन धर्म आचारंग सूत्र में जैन भिक्षुओं के
आचार नियम,
भगवती सूत्र में महावीर के जीवन,
शिक्षाओं का संग्रह संबंधी नियम दिये गए हैं
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सुत्तपटक पाँच निकायों (दीर्घ निकाय, मज्झिम निकाय, सयुंक्त निकाय, अंगुत्तर निकाय, तथा खुददक निकाय)
में विभाजित हैं।
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प्रत्येक 12 अंग के साथ एक उपांग सम्बद्ध हैं।
इनमे ब्रहम्न का वर्णन ,
खगोल विद्या ,
काल विभाजन,
मरणोत्तर जीवन आदि का उल्लेख मिलता हैं
|
विनय पटक में भिक्षु और भिक्षुणियों के संघ एवं दैनिक
जीवन संबंधी आचार विचार,
नियम संगृहीत हैं
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जैन साहित्य प्राकृत, अपभ्रश, कन्नड, तमिल, तेलुगू, संस्कृत आदि में
मिलते हैं । तमल ग्रंथ कुरुल के कुछ भाग जैनियों द्वारा लिखे गए हैं
|
अभिधम्मपिटक में बौद्द दार्शनिक सिद्धांतो का वर्णन
हैं। यह प्रश्नोत्तर के रूप में संकलित हैं। इसके अंतर्गत सात ग्रंथ (धम्मसंगणि विभंग, धातु कथा, युग्गल पंचति, कथावत्यु, यमक तथा पट्ठान)
सम्मिलित है।
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पूर्व मध्यकाल के जैन विद्वान हेम चंद्र (परिशिष्ट
पर्वन) ने काय,
व्याकरण,
ज्योतिष,
छंदशास्त्र आदि विविध विषयों पर प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं में साहित्य लिखकर इंका
बहुमुखी विकास किया है।
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जातक कथाओं में बुद्ध के पूर्वजनों की कथाएँ है। भारतीय
कथा साहित्य का यह सबसे प्राचीन संग्रह हैं । इसकी रचना पालि भाषा में हुई हैं।
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दीपवंश एवं महावंश में सिंहलद्वीप (श्रीलंका) का इतिहास
हैं। पालि भाषा में लिखित इस ग्रंथ से मौर्य इतिहास की जानकारी मिलती हैं
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मिलिंदपन्हों नामक बौदध ग्रंथ में यूनानी राजा मिनाण्डर
और बौद्ध भिक्षु नागसेन के बीच वार्तालाप
का वर्णन हैं
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बुद्धचरित,
सारिपुत्र प्रकरणत (अश्वघोष कृत),
सौंदरननन्द ,
महावस्तु,
विशुद्धिमग्म जैसे बौद्ध ग्रन्थों की रचना पाली भाषा में हुई हैं।
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जैन धर्म और बौद्द धर्म के
स्थापत्यों की तुलना
जैन स्थापत्य
|
बौद्ध स्थापत्य
|
जैन स्थापत्य के अंतर्गत भिक्षु –गृह, गुफाओं एवं मदिरों
का निर्माण मुख्य रूप से शामिल हैं
|
बौद्ध धर्म के अंतर्गत स्तूप, चैत्य एवं विहार
को शामिल किया जाता हैं
|
बौद्धों की तरह जैनियों ने भी भिक्षु गृह तथा
गुफाओं का निर्माण किया
|
गौतम बुद्ध के अस्थि अवशेषों के निर्मित भवनों को
स्तूप की संज्ञा दी गई
|
इनमें भिक्षु रहा करते थे। उनके इन निवास स्थाओं
का पता आज भी उदयगिरि में सिंह गुफा,
एलोरा में इंद्रा सभा,
लवकुंडी,
अभू पर्वत,
गिरनार,
खजुराहो,
चित्तौड़ आदि से मिलता है
|
चैत्य का शाब्दिक अर्थ हैं – चिता संबंधी। शवदाह के
पश्चात बचे हुए अवशेषों को भूमि में दफनाकर उनके ऊपर समाधि बनाई जाती थी , इनको ही चैत्य
कहा जाता था
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दक्षिण भारत में जैनियों के प्रमुख मंदिर श्रवणबेलगोला, मुदाबद्री तथा
गुरुवयंकेरो में आज स्थित है
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बौद्ध चैत्यों या स्तूपों के पास भिक्षुओं के रहने
के लिए आवास बनाया जाता था ,
जिसे विहार कहा जाता था
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जैन धर्म से संबधित अनेक ऐसे मंदिरों के प्रमाण
मिलते है,
जिनके ध्वांसवशेषों पर मस्जिदें खड़ी है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं अजमेर का अढ़ाई
दिन का झोपड़ा,
जिसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था
|
चैत्यों के उपासना स्थलों में परिवर्तित हो जाने के
कारण उसके समीप ही विहार का निर्माण होने लगा
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राजस्थान के आबू पर्वत पर निर्मित दिलवाड़ा
का जैन मंदिर कला की दृष्टि से उत्कृष्ट है
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सांची,
भरहुत आदि के स्तूप ,
अजंता की गुफाओं एवं चित्रकारियों,
अनेक स्थानों से प्राप्त एवं संग्रहालयों में सुरक्षित बुद्द बोधिसत्व की मूर्तियाँ
बौद्ध स्थापत्य कला का श्रेष्ठ उदाहरण हैं
|
खजुराहो में कई जैन मंदिर हैं; जैसे पार्श्वनाथ, आदिनाथ के मंदिर
स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं
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जैन धर्म और बौद्द धर्म को
मिलने वाला राजकीय संरक्षण
जैन धर्म
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बौद्ध धर्म
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महापदम नन्द (नन्द वंश)
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बिंबिसार (हर्यक वंश)
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चन्द्रगुप्त वंश (मौर्य वंश)
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अजातशत्रु (हर्यक वंश)
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संप्रति (अशोक का पौत्र)
|
अशोक (मौर्य वंश)
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खारवेल (कलिंग नरेश)
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कालाशोक (शिशुनाग वंश)
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इंद्र चतुर्थ (राष्ट्रकूट शासक)
|
शाक्य (कपिलवस्तु के शासक)
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अमोघवर्ष (राष्ट्रकूट शासक)
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बुलि(अलकप्त के शासक )
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चामुंडराय (गंग वंश)
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मल्ल (पावा के शासक)
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जय सिंह सिद्धराज (चालुक्य वंश)
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मोरिय (पिल्लीवन के शासक)
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कुमार पाल (चालुक्य वंश)
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कोलिय (रामग्राम के शासक)
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धंग (चंदेल वंश)
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प्रसेनजीत (कौशल के राजा)
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भीमदेव (सोलंकी वंश)
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कनिष्क (कुषाण वंश)
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जैन धर्म और बौद्द धर्म का
पतन के कारण
जैन धर्म
|
बौद्ध धर्म
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अहिंसा पर अधिक बल:
जैन धर्म ने अहिंसा की नीति को इतना अधिक महत्वपूर्ण बना दिया कि वह अव्यवहारिक बन
गई। आरंभ में कृषक और क्षत्रिय इन धर्म की ओर आकृष्ट हुए, परंतु बाद में
वे भी इस धर्म से विमुख होने लगे,
क्षत्रिय के लिए युद्ध करना और कृषक के लिए कृषि करना इस धर्म में रहते हुए संभव
नहीं था
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बौद्ध धर्म में प्रविष्ट बुराइयाँ:
इस धर्म का उद्भव और विकास ब्राह्मण धर्म में प्रचलित दुर्गणों कि प्रतिक्रिया का
परिणाम था,
इसलिए आरंभ में इस धर्म को जनता का समर्थन मिला। परंतु कालांतर में इस धर्म में भी
वे अवगुण प्रविष्ट हो गए ,
जिनका इस धर्म ने विरोध किया था। महायानियों ने बुद्ध को एक देवता के रूप में प्रतिष्ठित
किया और उनकी मूर्ति बनाकर पुजा करने लगे
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नियमों की कठोरता:
जैन धर्म ने कठिन तपस्या और आत्मपीड़न पर
अधिक बल दिया। संघ और दारम के नियम इतने कठोर हो गए थे कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए
उनका पालन करना संभव नहीं था। वस्त्र न पहनना, भूखा रहना, धूप में शरीर को तपाना, किसी जीव जीवाणु
की हत्या न करना इत्यादि नियमों का पालन सभी के लिए संभव नहीं था
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संघ का भ्रष्टाचारपूर्ण
जीवन: आरंभ में बौद्ध संघ का संगठन धर्म प्रचार
के लिए किया गया था। संघ के सदस्यों के लिए आचरण संबंधी कठोर नियम बनाए थे, जिससे सदाचारी
जीवन व्यतीत करते हुए वे धर्म का प्रचार कर सकें, परंतु कालांतर में संघ के भिक्षु अदर्शमय
जीवन त्याग कर भोग विलास की जिंदगी व्यतीत करने लगे। संघ में स्त्रियॉं के प्रवेश
ने पतन कि प्रक्रिया को और तेज कर दिया
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वैदिक धर्म से संबंध बनाये
रखना: जैन धर्म की असफलता का एक मुख्य कारण यह
भी था कि वह अपने आपको को पूर्णत: वैदिक धर्म से अलग नहीं कर पाया था। महावीर ने
वैदिक दर्शन क पूरी तरह से त्याग नहीं किया था बल्कि उसे एक दार्शनिक दर्जा प्रदान
किया। वैदिक धर्म कि ही तरह भक्तिवाद,
देवताओं का अस्तित्व आदि इस धर्म में भी था
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संस्कृत का उपयोग:
महायान संप्रदाय के उदय के बाद बौद्धों ने जनसाधारण की भाषा पाली की जगह कठिन भाषा
संस्कृत का सहारा लिया। बौद्द ग्रन्थों की रचना संस्कृत में होने लगी। इस कारण से
बौद्द की धर्म की लोकप्रियता में कमी आने लगी
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उचित राजश्रय का अभाव:
इस धर्म को उचित राजश्रय नहीं मिला। लिच्छिवियों, बिंबिसार और अजातशत्रु
ने इस धर्म को स्वीकार तो किया पर वे इसे अपना पूरा समर्थन नहीं दे पाये। साथ ही
चन्द्रगुप्त मौर्य और खारवेल को छोड़कर अन्य किसी शासक ने इस धर्म को महत्व नहीं दिया।
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विदेशी आक्रमण: विदेशी आक्रमणों ने भी बौद्ध धर्म
के पतन में सहयोग दिया। बौद्धों को हूणों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। इससे बौद्धों
को अधिक क्षति पहुंची। बाद में तुर्क आक्रमणकारियों ने भी धन के लालच में प्रमुख
बौद्द केंद्र (नालंदा,
विक्रमशिला आदि) को नष्ट कर दिया । भारत में तुर्क साम्राज्य के साथ ही बौद्ध धर्म
का पतन आरंभ हो गया।
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वर्तमान में जैन और बौद्ध धर्म
जैन धर्म
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बौद्ध धर्म
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जनगणना 2011 के अनुसार भारत में कुल जैन 45
लाख हैं। जनसंख्या की दृष्टि से इनका स्थान भारत में 6th है। दशकीय वृद्धि सबसे कम 5.4%
हैं।
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जनगणना 2011 के अनुसार भारत में कुल बौद्ध 84 लाख
हैं। जनसंख्या की दृष्टि से इनका स्थान भारत में 5th है। दशकीय वृद्धि 6.1% हैं।
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लिंगानुपात की दृष्टि से जैनियों का तीसरा
स्थान हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार जैनियों का लिंगानुपात 940 हैं ।
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लिंगानुपात की दृष्टि से जैनियों का दूसरा
स्थान हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार जैनियों का लिंगानुपात 965 हैं ।
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साक्षरता की दृष्टि से ये लोग शीर्ष पर हैं।
इनकी 94.9% जनसंख्या साक्षर हैं
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साक्षरता की दृष्टि से ये लोग तीसरे स्थान पर हैं।
इनकी 81.3% जनसंख्या साक्षर हैं
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भारत में सर्वाधिक जैन महाराष्ट्र (14 लाख)
में हैं,
इसके बाद क्रमश: राजस्थान(6.2 लाख), गुजरात(5.7 लाख), मध्य प्रदेश(5.6
लाख) व कर्नाटक(4.4 लाख) में हैं।
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भारत में सर्वाधिक बौद्ध सिक्किम(37.39%) में हैं, इसके बाद क्रमश: अरुणाचल प्रदेश (11.77%), मिजोरम(8.51%), महाराष्ट्र(5.81%)
व त्रिपुरा(3.41%) में हैं।
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